नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
प्रेम का डोरा किसी दिन जीवन और मृत्यु को एक बना देगा
वह दीप जो अपने हाथों पर रखे मैं चला जा रहा हूँ, वही दूरस्थित किसी तामस अज्ञान का शत्रु है।
जिस मार्ग पर मैं अनवरत गति से चला जा रहा हूँ वही मेरे लिये भयावना बन गया है क्योंकि उसी पर लगे पुष्पक वृक्ष भी मेरी ओर ऐसे भौंह सिकोड़ कर देखते हैं जैसे कोई डरावनी भूतात्मा किसी प्राणी को खा जाने से पूर्व उसे मुँह बिगाड़ कर देखती है।
मैं अपने मार्ग पर चल तो रहा हूँ पर मेरा ही पद-शब्द भूमि से लौट-लौट कर मेरे कानों में ऐसे गूँज कर रहा है जैसे कभी मेरा अपना ही संदेश मस्तिष्क में छाकर गूँजता है।
अतः मेरे देव तेरे ही उषाकालीन दीप को देखने की पिपासा से प्रेरित होकर अन्तर ही अन्तर प्रार्थना कर रहा हूँ। किसलिए? मैं उस क्षण का साक्षात्कार चाहता हूँ जब दूरस्थित और निकटस्थित प्रेमीगण एक दूसरे के पास आयें, प्रेमपूर्वक मिलें और एक दूसरे का अनुरागमय हो चुम्बन करें। और हाँ! मैं उस शुभ घड़ी की भी प्रतीक्षा कर रहा हूँ जब जीवन और मृत्यु का हृदय प्रेम से परिप्लावित होकर एक हो जावेगा।
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