नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
प्रभु! अभी तक मुझे मुक्त करने का विचार तुम्हारे मस्तिष्क में नहीं आया।
हे प्रभु! मुझे जीवन की विनाशात्मक एवं कुहामय छायाओं से मुक्त कर दो।
क्योंकि रात्रि काली है–अंधकारमय है और तेरा यह पथिक अंधा है, अतः तू मेरे हाथ को पकड़ कर चल।
जीवन की निराशा से मुझे दूर करो, मेरे स्वामी! मेरी पीड़ा के बुझते हुए दीपक को अपनी दीप्तिमान ज्योति से छू दो। मेरी चकित शक्ति की तन्द्रा तोड़कर उसे जागरूक एवं सचेतकर दो। मेरे स्वामी!
जब मुझे आगे ही बढ़ना है तो अपने नुकसान का हिसाब लगाने के लिए मुझे पीछे मत पड़ा रहने दो।
मेरी इच्छा है–प्रभु–कि मेरा मार्ग प्रत्येक क्षण गा-गाकर मुझे बताता रहे कि मेरे जीवन को प्रत्येक पद पर आश्रय मिलता रहेगा।
मैं बार-बार यही कहूँगा मेरे प्राणेश!–कि जीवन रूपी निशा अंधकारमय है और तेरा मानव रूपी पथिक अंधा है। अतः आवागमन से छुटकारा पाने के लिए, तुम मेरा हाथ पकड़ कर अपने हाथ का सहारा दे दे।
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