नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मुझे पूर्णतया ज्ञात है–इससे पूर्व कभी भी सांसारिक स्त्री के प्रति इससे अधिक सुन्दर मन्त्र का उच्चारण नहीं किया गया। मुझे ज्ञात है–उस सुन्दर मन्त्र के सुन्दर शब्द उस सुन्दर उषा की नाँईं थे जो शान्त खड़ी पहाडियों के पीछे से एकाएक आकर अपना रूप दिखला देती हैं। मैं तुम्हें बताऊँ–जैसे ही इस नव युवक ने अपनी मादक आँखें खोलीं, तब वैसे ही, –सुन्दरियाँ ने अपने हाथों से अपने रूपवान मुखों को छिपा लिया। योगी ने देखा कि फिर भी उन सुन्दरियों की पतली कमरें छिपी हुई हँसी के प्रभाव से लचक रही हैं तो उसके माथे पर संदेह की एक रेखा दौड़ गई। यह सब कुछ देखते हुए भी मैं शीघ्रतर उसके समीप गई-ऐसा प्रदर्शित किया कि मैं बहुत दुखी हूँ और उसके चरणों में अपना सर रखकर, मैंने कहा–‘देव! मेरी सेवा भी स्वीकार कर लो।’
ऐसा कहकर मैं उसे शीतल धारा के तट पर एक सुहावने और मन मोहक कुंज में ले गई। वहीं पर अपनी रेश्मिन साड़ी के छोर से मैंने उसका शरीर पोंछा। मैं नीचे झुकी और पृथ्वी पर घुटने टेककर अपने केशों के छोर से उसके कोमल पैरों को पोंछ दिया। तत्पश्चात् अपना मुख उठाकर, मैंने उसके तेजस्वी मुख को देखा और अपनी आँखों को उसकी सुन्दर आँखों में गढ़ा दिया–मैं देखती रही उसकी ओर। तब मैंने अनुभव किया कि यदि संसार का सर्वप्रथम चुम्बन किसी नारी को मिला है तो केवल मुझे मिला है।
मैं यह सोचे बिना न रह सकी कि मैं भाग्यवती हूँ और मेरे साथ मेरा ईश्वर भी सौभाग्यशाली है जिसने मुझे नारी का जन्म दिया। मैंने सुना, वह कह रहा था ‘तुम कोई अज्ञात् परमात्मा मालूम पड़ती हो। तभी तुम्हारा स्पर्श अमृत्व देनेवाली किसी देवी का स्पर्श मालूम पड़ता है। और यही कारण है तभी तो तुम्हारी काली आँखों में अर्धरात्रि की रहस्यमयी एवं सुन्दरतम् कालिमा प्रतिलक्षित हो रही है।’
राज्य के वृद्ध सलाहकार! वृद्ध होकर भी तुम इस प्रकार मुस्कुराते हो। समझ लो! केवल सांसारिक ज्ञान की धूलि ने अपने आवरण से तुम्हारे नेत्रों को ढक रखा है। पर देखो! इस शिशु समान युवक के बालकीय भोलेपन ने अपने तेजस्वी नेत्रों से इस संसार की अज्ञानतापूर्ण कुहा को भेद दिया है और अंधकार के आवरण को हटाकर शाश्वत् सौन्दर्य के दर्शन कर लिए हैं।
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