नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
ना हमारा अपने ही पर अधिकार है न अपने घर पर
आकाश अपने ही नीला-वर्ण में छिपे स्वप्नों को निहार रहा है। हम बदलिया के समान उसी आकाश की झूँठी–विचारावलियाँ हैं। हमारा अपना कोई घर नहीं। इसी आकाश की छाती पर चमक रहे सितारे शाश्वत् के मुकुट पर दीप्त हैं। इन्हीं सितारों से जो भी लिखित पत्र हैं वे स्वयं भी शाश्वत हैं। पर हमारे अपने लिखे पत्र तो केवल पेन्सिल की लकीरें हैं जो किसी भी क्षण मिट सकती हैं।
अपना तो केवल इतना ही अधिकार है कि वायु की मंच पर आकर अपना नाटक खेल लें, अपने तंबूरे बजा लें और कुछ क्षणों तक के लिए हँसी की बिजलियाँ गिरा दें।
परन्तु इतनी बात अवश्य है कि हमारी हँसी ही सारे संसार की वर्षा का उद्गम है। हमारी हँसी में वास्तविकता है पर बादलों की गड़गड़ाहट निरर्थक है।
अपने जीवनोपार्जन के लिये समय पर हमारा कोई दावा नहीं है और नांही, उस स्वांस पर हमारा अधिकार है जिसने-नामकरण से पूर्व ही हमें जीवन दे दिया।
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