नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
यदि प्रेम-देव की उपस्थिति में ही एक दूसरे को पा सकें तो अच्छा है
नारी! तुम मेरे घर में रहा करती थीं तब तुमने मेरे घर का सृजन अपने सौन्दर्य और अनुशासन से किया था। अतः मेरी इच्छा है तुम वैसा ही सौन्दर्य और अनुशासन मेरे इस वैरागी जीवन में भी ला दो।
समय के टूटे और धूलि-धूसरित टुकड़ों को तुम हटा दो, खाली पड़े गिलासों को भर लो और असावधानी से किये गये सब कामों को फिर से सुधार दो।
तत्पश्चात् मन्दिर के अन्तर द्वार को तुम खोल दो, अपने ही हाथों से एक दीपक जला लो और तब मुझसे कहो–कि हम दोनों ही अपने प्रेम-देव की उपस्थिति में निडर होकर एक दूसरे को पा रहे हैं और एक दूसरे के जीवन-साथी बन रहे हैं।
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