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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839
आईएसबीएन :9781613011799

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

उसका रोना मेरे हृदय में रो-रोकर मुझसे कुछ कहता है।

नव कुमारियाँ अपने-अपने घरों से नदी की ओर चल दीं हैं। वे पानी भरने के लिए जा रहीं हैं। उनकी पारस्परिक हँसी मुझे वृक्षों के पीछे से सुनाई पड़ रही है। मेरी अपनी भी यही इच्छा है कि मैं भी पानी पीने के लिए उन्हीं के साथ नदी पर जाऊँ।

जब वे नदी की ओर जा रही होंगी, तब उन्हें वृक्षों की छायाओं के नीचे बकरियाँ चरती हुई दीख पड़ेंगी और गिलहरियाँ गिरे हुए पत्तों पर दौड़कर धूप से छाया की ओर लुप्त होती दीख पड़ेंगी।

मेरी दिनचर्या समाप्त हो चुकी है। मेरे कलसे भरे हुए हैं। तब मैं क्या करूँ? अतः मैं अपने द्वार पर खड़ा हुआ ‘एरिका’ की चमकती हुई पत्तियों को देख रहा हूँ।–और अपने ही द्वार पर खड़ा मैं उन स्त्रियों की हँसी को सुन रहा हूँ जो नदी से पानी लेने जा रही हैं। वे एक दूसरे से हँसी करती हुई जा रही हैं–यह मुझे मालूम है।

अपने नित्यप्रति के जीवन में, नदिया से अपने कलसों में पानी भरकर लाना मुझे प्रिय है। उससे भी अधिक सुख मुझे तब होता है, जब मैं ओस में डूबी हुई उषा-बेला में, कलसे लेकर पानी भरने जाता हूँ, अथवा उस समय जाता हूँ जब दिवस अवसान की अन्तिम किरण भी थककर बैठ जाती है।

जब कभी भी मेरा मस्तिक सुस्त-सा रहता है तभी नदिया की कलकल करती हुई धारा मुझसे तोतली बोली में बातें करने लगती है। पर जब भी मेरे प्रफुल्लित विचारों को जान लेती है तभी अपनी मंद हँसी में वह खो भी जाती है।

मुझे याद है–एक दिन मुझे दुःखी देखकर उससे रहा न गया और अपने नयनों में अश्रुजल भरकर वह सिसकियाँ भरने लगी। तब ही मुझे भी ऐसा लगा मानो मुझसे नहीं वरन् हृदय से रो-रोकर वह कुछ कह रही है।

मैं उसके पास उस समय भी जाता था जब वर्षा घुर्रा घुर्रा–कर आती थी और बतखों की उत्सुक कू-कू को पानी में डुबो देती थी।

मेरी दिनचर्या समाप्त हो चुकी है। मेरे कलसे भरे हुए हैं। पश्चिम में सूर्याभा पीली पड़ गई है–और छायाएँ अपने-अपने वृक्षों की गोद में आ-आकर बैठ गई हैं। तिल के पुष्पित और खिले हुए खेतों से सिसकियाँ निकल-निकलकर मेरे कानों में आ रही हैं परन्तु मेरे नेत्र तो निरन्तर गाँव की उस ‘गली’ की ओर लगे हुए हैं जो यमुना के तट तक पहुँचती हैं और जो गाँव की नारियों को पानी भरने के लिए अपने साथ नदी तक ले जाती है।

* * *

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