नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
सागर भी अपने गम्भीरतम् रहस्य को छिपा नहीं सकता
अपनी खिड़की पर और अपने ही स्थान पर बैठने का अवसर तूने मुझे सुबह से ही दे रखा है।
मैंने तेरे पथ के उन सेवकों से बातें कर ली हैं जो तेरे आदेशों और सन्देशों को लेकर दौड़ रहे हैं। और तेरे आकाश को ही अपनी वीणा का तार मान कर मैं सब कुछ गा चुका हूँ।
मैं सागर को उसी की अथाह और अमाप्य और शान्ति की स्थिति में देख चुका हूँ। मैंने सागर के तूफान को अपनी ही गहनता के रहस्य को तोड़ने के लिए आतुर और व्याकुल भी देखा है।
मैंने भूमि को उसकी युवावस्था के अत्यन्त खर्चीले प्रीतिभोज में भी देखा है और साथ ही विचार छाया में मग्न रहने वाले उसके निस्तेज क्षणों को भी।
जो किसान खेतों में बीज बोने के लिये गये थे–उन्होंने मेरे अभिवादन को स्वीकार कर लिया है और वे भी जो अपने घर को आते समय फसल लेकर आते हैं अथवा खाली टोकरी लेकर आते हैं अपने मार्ग में मुझे गाता हुआ पाते हैं।
–इसी प्रकार दिवस बीत जाता है और तब संध्या समय अपने अन्तिम गीत को गाकर मैं यही कहता हूँ–‘‘हाँ मैं तेरे संसार से प्रेम करता हूँ।’’
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