नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मेरा आना रोकने के लिये तुमने अपने द्वारों को बन्द कर लिया
गत रात्रि को पड़ा हुआ मैं यही सोच रहा था कि किस प्रकार निर्दयी होकर मैंने अपने जीवन के दिनों को व्यतीत किया–तब ही एक क्षण पश्चात् मुझे ध्यान आया–तुमने मुझसे कहा था–
अपने यौवन के चिंताहीन जीवन में तुम्हारे गृह-द्वार खुले पड़े रहते थे।
संसार स्वछंद होकर तुम्हारे घर में प्रवेश करता और फिर अपनी इच्छा से ही बाहर निकल आता, और उसी प्रकार संसार से सम्बन्धित धूलि, संदेह, अव्यवस्था और संगीत भी इच्छानुसार कभी अन्दर जाते और कभी बाहर आ जाते थे।
–यदि ऐसा था तो एक अज्ञात और अनादेशित के समान संसार के समस्त जनगण को साथ लेकर मैं तुम्हारे पास आया ही करता था।
यदि जनहीन एकाकीपन को पाने के लिए ही तुमने अपने द्वारों को बंद कर लिया था, तो बताओ, मैं किस प्रकार मार्ग पाकर तुम्हारे घर आ गया।
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