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पंचतंत्र

विष्णु शर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9838
आईएसबीएन :9781613012291

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भारतीय साहित्य की नीति और लोक कथाओं का विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। इन लोकनीति कथाओं के स्रोत हैं, संस्कृत साहित्य की अमर कृतियां - पंचतंत्र एवं हितोपदेश।

उन्होंने अपने तपोबल से सूर्यदेव का आवाहन किया। सूर्य ऋषि के सामने प्रकट हुए और बोले, 'प्रणाम मुनिश्री, कहिए आपने मुझे क्यों स्मरण किया? क्या आज्ञा है?' ऋषि ने कांता की ओर इशारा करके कहा 'यह मेरी बेटी है। सर्वगुण सुशील है। मैं चाहता हूं कि तुम इससे विवाह कर लो।'

तभी कांता बोली, 'तात, यह बहुत गर्म है। मेरी तो आंखें चुंधिया रही हैं। मैं इनसे विवाह कैसे करूं? न कभी इनके निकट जा पाऊंगी, न देख पाऊंगी।'

ऋषि ने कांता की पीठ थपथपाई और बोले, 'ठीक है। दूसरे और श्रेष्ठ वर देखते हैं।'

सूर्यदेव बोले 'ऋषिवर, बादल मुझसे श्रेष्ठ है। वह मुझे भी ढक लेता है। उससे बात कीजिए।'

ऋषि के बुलाने पर बादल गरजते-लरजते और बिजलियां चमकाते प्रकट हुए। बादल को देखते ही कांता ने विरोध किया, 'तात, यह तो बहुत काले रंग का हैं। मेरा रंग गोरा है। हमारी जोड़ी नहीं जमेगी।'

ऋषि ने बादल से पूछा 'तुम्ही बताओ कि तुमसे श्रेष्ठ कौन है?'

बादल ने उत्तर दिया 'पवन। वह मुझे भी उड़ाकर ले जाता है। मैं तो उसी के इशारे पर चलता रहता हूं।'

ऋषि ने पवन का आवाहन किया। पवन देव प्रकट हुए तो ऋषि ने कांता से ही पूछा 'पुत्री, तुम्हें यह वर पसंद है?”

कांता ने अपना सिर हिलाया, “नहीं तात! यह बहुत चंचल हैं। एक जगह टिकेगा ही नहीं। इसके साथ गॄहस्थी कैसे जमेगी?'

ऋषि की पत्नी भी बोली, 'हम अपनी बेटी पवन देव को नहीं देंगे। दामाद कम से कम ऐसा तो होना चाहिए, जिसे हम अपनी आंख से देख सकें।'

ऋषि ने पवन देव से पूछा, 'तुम्हीं बताओ कि तुमसे श्रेष्ठ कौन है?'

पवन देव बोले 'ऋषिवर, पर्वत मुझसे भी श्रेष्ठ है। वह मेरा रास्ता रोक लेता है।'

ऋषि के बुलावे पर पर्वतराज प्रकट हुए और बोले 'ऋषिवर, आपने मुझे क्यों याद किया?'

ऋषि ने सारी बात बताई। पर्वतराज ने कहा 'पूछ लीजिए कि आपकी कन्या को मैं पसंद हूं क्या?'

कांता बोली 'ओह! यह तो पत्थर ही पत्थर हैं। इसका दिल भी पत्थर का होगा।'

ऋषि ने पर्वतराज से उससे भी श्रेष्ठ वर बताने को कहा तो पर्वतराज बोले 'चूहा मुझसे भी श्रेष्ठ है। वह मुझे भी छेदकर बिल बनाकर उसमें रहता है।'

पर्वतराज के ऐसा कहते ही एक चूहा उनके कानों से निकलकर सामने आ कूदा। चूहे को देखते ही कांता खुशी से उछल पड़ी 'तात, तात! मुझे यह चूहा बहुत पसंद हैं। मेरा विवाह इसी से कर दीजिए। मुझे इसके कान और पूंछ बहुत प्यारे लग रहे हैं। मुझे यही वर चाहिए।'

ऋषि ने मंत्र बल से एक चुहिया को तो मानवी बना दिया, पर उसका दिल तो चुहिया का ही रहा। ऋषि ने कांता को फिर चुहिया बनाकर उसका विवाह चूहे से कर दिया और दोनों को विदा किया।

सीख : जीव जिस योनि में जन्म लेता हैं, उसी के संस्कार बने रहते हैं। स्वभाव नकली उपायों से नहीं बदले जा सकते।

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