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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837
आईएसबीएन :9781613012734

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

5. गर्म शोरबा, ठण्डे हाथ


मुल्ला नसीरूद्दीन की बुद्धिमानी और विद्वता की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी थी। इसलिए अन्य नगरों और पास-पड़ौस के देशों में रहने वाले विद्वान लोग उनसे मिलने की आकांक्षा करने लगे थे। ऐसे ही लोगों में एक बहुत योग्य आदमी था। उसने निश्चय कर लिया कि वह मुल्ला की सेवा में अवश्य उपस्थित होगा और उनसे विद्या प्राप्त करेगा।

इस उद्देश्य से उसने जैसे-तैसे रुपया बचाया और मुल्ला के गाँव की ओर चल दिया। रास्ता बड़ा दुर्गम था, पर्वत थे। उनके बीच में पगडंडियों के ऊपर चलना पड़ता था। मुल्ला के इस प्रेमी ने हजारों मुसीबतों के बावजूद अपनी यात्रा जारी रखी। उसका ख्याल था कि मुल्ला जैसे विद्वान से वह अवश्य कुछ-न-कुछ सीख लेगा, क्योंकि विद्या केवल पुस्तकों से ही नहीं मिलती। उसके लिए किसी सुयोग्य गुरु की भी आवश्यकता होती है।

उस आदमी ने कुछ लोगों से यह भी सुन रखा था कि मुल्ला में कुछ सनक भी है। इसलिए उसे यह भी चिन्ता थी कि सही हालत मालूम हो जाये। वह पहले भी कई विद्वानों से मिल चुका था और अनेक पाठशालाओं में जा चुका था। उसको विश्वास था कि वह एक मुलाकात में यह पता लगा लेगा कि मुल्ला क्या कुछ जानते हैं और मुझे कितनी विद्या सिखा सकते हैं।

इसलिए वह आदमी मुल्ला के पास पहुँचा। उनका मकान एक पहाड़ी की चट्टान पर था। पास पहुँचकर उसने खिड़की से झाँककर देखा कि मुल्ला अँगीठी के पास बैठे अपने दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ते जाते हैं और मुँह से फूँकते जाते हैं। उस आदमी को बड़ा विस्मय हुआ और घर में प्रवेश करते ही उनसे पूछा- 'श्रीमान! आप अभी क्या कर रहे थे?

मुल्ला ने जवाब दिया- 'ओह! मैं अपनी फूँक से अपने हाथ गरम कर रहा था।'

इस सवाल के जवाब के बाद दोनों ओर चुप्पी छा गयी और दोनों में से एक भी न बोला।

थोड़ी देर बाद मेहमान ने मन ही मन में कहा- 'लगता है, मुल्ला अपनी विद्या मुझे न सिखायेंगे।' मेहमान अभी यह सोच ही रहा था कि मुल्ला की बीवी दो प्यालों में शोरबा लेकर आयी। नसीरूद्दीन ने प्याला अपने हाथ में लिया और मुँह से शोरबे को फूँकना शुरू कर दिया। मेहमान ने सोचा कि चलो, अब कुछ सीखा जाये। इसलिए उसने मुल्ला से पूछा- 'गुरुजी! आप क्या कर रहे हैं?

मुल्ला ने जवाब दिया- 'मैं जरा शोरबा ठंडा करने के लिए उसको फूँक रहा हूँ।‘

मेहमान चक्कर में आ गया। उसने निश्चय कर लिया कि मुल्ला विद्वान् आदि कुछ नहीं है। बस एक धोखेबाज आदमी है और दूसरों को बेवकूफ बनाया करता है। उसने अपने आप से कहा- 'अभी यह पागल फूँक से हाथों को गर्म कर रहा था। अब उसी फूँक से शोरबे को ठण्डा कर रहा है। भला एक फूँक से दो काम भी हो सकते हैं। ऐसे झूठे आदमी पर क्या विश्वास किया जाये। अब इससे अधिक कुछ पूछना बेकार है।'

यह सोचकर वह खड़ा हो गया। मुल्ला से विदा चाही और मकान से बाहर निकल आया। मुल्ला ने भी उसे रोकना उचित नहीं समझा क्योंकि अगर रोकते, तो उसके खाने-पीने का प्रबन्ध करना पड़ता, जो मुल्ला के लिए असंभव था।

उस आदमी ने घर से निकल कर पहाड़ी रास्ता तय करते हुए सोचा- 'मेरा समय बिल्कुल बरबाद नहीं हुआ, क्योंकि यहाँ आने से कम-से-कम यह तो यकीन हो गया कि मुल्ला विद्वान नहीं है।

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