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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837
आईएसबीएन :9781613012734

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

3. खुदा की देन


मुल्ला नसीरूद्दीन की बेकारी से उनकी बीवी तंग आ चुकी थी। वह प्राय: मुल्ला को कोई काम न करने पर धिक्कारती। मुल्ला कुछ न कहते। एक दिन उनकी बीवी ने कुछ अधिक ही बक-बक शुरू कर दी। जब मुल्ला बहुत तंग आ गये, तो गुस्से की हालत में बीवी से बोले- 'तुमने अकारण मुझे परेशान कर रखा है। मैं नौकरी कर भी कैसे सकता हूँ। तुम जानती हो कि मैं खुदा का सेवक हूँ, जो सबको जीविका देने वाला है। अब तुम ही बताओ, एक समय में दो नौकरियाँ कैसे हो सकती हैं?'

बीवी कुछ देर सोचने के बाद बोली- 'चलो माना, तुमने अल्लाह मियां की नौकरी कर रखी है, पर हर मालिक अपने नौकर को तनख्वाह देता है। आखिर तुम्हें तनख्वाह क्यों नहीं मिलती? मुल्ला की समझ में यह बात आ गयी। वह बीवी से संबोधित होकर बोले-'मेरा ख्याल है, मैंने कभी अल्लाह से तनख्वाह माँगी ही नहीं। अगर मैं माँगता, तो वह अवश्य ही देता। जब दुनिया के कंजूस मालिक तनख्वाहदे देते हैं, तो अल्लाह मियाँ तो सब मालिकों का मालिक है, वह क्यों न देगा?'

बीवी ने कहा-'अब तुम ही समझो। जाओ, अपनी तनख्वाह माँग कर देखो।'

मुल्ला बीवी के पास से उठे और सीधे बाग में पहुँचे। वहाँ जाकर पहले तो नमाज पढ़ी। उसके बाद खड़े होकर हाथ ऊँचे करके खूब जोर-जोर से प्रार्थना करने लगे-'मेरे परवरदिगार! मैंने अपना सारा जीवन तेरी आराधना और तेरे बंदों की सेवा में बिताया है। इसकी मजदूरी कम से कम सौ दीनार बनती है। अगर तू मुझे यह धन प्रदान कर दे, तो मैं जीवन भर तेरा आभारी रहूँगा। मेरे खुदा, मेरी प्रार्थना सुन ले।'

बाग के पास एक मकान था। उसमें कोई अमीर आदमी रहता था। उसने मुल्ला की यह प्रार्थना सुन ली। उसको मजाक सूझा। उसने सौ दीनार एक थैली में डालकर थैली को खिड़की से बाहर फेंक दिया। वह मुल्ला के कदमों में आकर गिरी। मुल्ला ने थैली देखी तो उनका सिर गर्व से ऊँचा हो गया। वह बड़े रौब के साथ खड़े हुए और थैली बगल में दबा कर सीधे बीवी के पास पहुँचे और उससे बोले- 'देखो, मैं न कहता था कि मैं भी बहुत पहुँचा हुआ फकीर हूँ। जैसे ही मैंने खुदा से अपनी पिछली सेवाओं की मजदूरी माँगी, उसने उसी समय मेरे कदमों में यह धन डाल दिया। अब तो तुम मानती हो मुझको।'

बीवी सचमुच बहुत प्रभावित हुई। उसे रुपयों का थैला मिलना था कि मुल्ला के दिन फिर गये। खूब दिल खोलकर पैसा खर्च करने लगे। घर-गृहस्थी की एक-एक चीज खरीदी जाने लगी। मुल्ला और उनकी बीवी ने अपने लिए खूब कपड़े खरीदे और सिलने के लिए दर्जी को दे दिये। हर प्रकार का फर्नीचर भी खरीदा। मुहल्ले भर में बात उड़ गयी कि मुल्ला को कहीं से बड़ा पैसा हाथ लग गया है।

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