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मुल्ला नसीरुद्दीन के चुटकुले

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9836
आईएसबीएन :9781613012741

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मुल्ला नसीरूद्दीन न केवल हँसोड़ था, बल्कि वह अच्छा हकीम भी था और सामान्य लोगों के सुख-दुःख में सदा भागीदार भी बनता था, इसलिए वह अत्यन्त लोकप्रिय था।

41

कब्रिस्तान के चौकीदार को नशे की आदत थी। नशे की झोंक में एक दिन उसने कब्र खोदना शुरू कर दिया और खोदता ही चला गया। जब नशा टूटा तो उसे पता चला कि कब्र इतनी गहरी खुद चुकी है कि निकला भी नहीं जा सकता। शाम का अँधेरा भी घिरने लगा था। उसे देखकर उसकी घबराहट और अधिक बढ़ गई।

तभी कब्रिस्तान में घूमता हुआ मुल्ला नसीरूद्दीन आ निकला। उसके पदचाप की आहट सुनकर कब्र में से चौकीदार चिल्लाया- अरे कौन हो भाई, खुदा के वास्ते मुझे निकाल लो, मैं ठण्ड के मारे सिकुड़ रहा हूँ। उसकी आवाज सुनी तो मुल्ला ने कब्र के अन्दर झाँका और सहानुभूति के स्वर में बोला-'ठण्ड जरूर लग रही होगी भाई, जो लोग तुम्हें दफनाने आये थे, वे तुम्हारे ऊपर मिट्टी डालना भी तो भूल गये हैं। लो, मैं मिट्टी डाले देता हूँ।' यों कहकर वह मिट्टी डालने लगा।

'हकीम साहब, सच-सच बताइये कि आपके इलाज से मेरा रोग दूर तो हो जायेगा न?' रोगी ने पूछा।

'सौ फीसदी!' मुल्ला ने छाती ठोंककर कहा।

'निश्चित सफलता की गारण्टी आप किस आधार पर ले रहे हैं?'

'आकड़ों के आधार पर।'

'वह कैसे?'

'आकड़ों के अनुसार इस रोग में छ: में से केवल एक मरीज ही बच पाता है। पाँच मरीज मेरे इलाज से मर चुके हैं, आप छठवें हैं।

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