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मुल्ला नसीरुद्दीन के चुटकुले

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9836
आईएसबीएन :9781613012741

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मुल्ला नसीरूद्दीन न केवल हँसोड़ था, बल्कि वह अच्छा हकीम भी था और सामान्य लोगों के सुख-दुःख में सदा भागीदार भी बनता था, इसलिए वह अत्यन्त लोकप्रिय था।

33

मुल्ला की कंजूसी की आदत से तंग आकर उसके जिगरी दोस्त ने कहा-'नसरू, तुम दान-पुण्य के लिए कानी-कौड़ी भी खर्च करना नहीं जानते हो, यह बड़ी बुरी बात है।'

'बेशक!' मुस्कराकर मुल्ला बोला-'क्या करूँ प्यारे दोस्त, आदत तो आदत ही है, मैं इसे छोड़ने की बहुत कोशिश करता हूँ मगर छूटती ही नहीं है कम्बख्त!'

'कल मंदिर में दान-पुण्य की प्रशंसा पर प्रवचन होगा, तुम मेरे साथ चलना।'

'जरूर! जरूर!!' मुल्ला ने स्वीकृति दे दी।

दूसरे दिन मुल्ला का मित्र उसे साथ लेकर मंदिर गया और दोनों ने मन लगाकर प्रवचन सुना।

प्रवचन समाप्त होने पर दोस्त ने मुल्ला से पूछा-'नसरूद्दीन! अब तो समझ गये न दान का महत्व?'

'हाँ, बहुत अच्छी तरह! अब मैं भी पंडितजी की तरह ही रोज दान माँगा करूँगा।' मुल्ला ने मुस्कराकर अपने दोस्त से कहा।

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