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मुल्ला नसीरुद्दीन के चुटकुले

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9836
आईएसबीएन :9781613012741

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मुल्ला नसीरूद्दीन न केवल हँसोड़ था, बल्कि वह अच्छा हकीम भी था और सामान्य लोगों के सुख-दुःख में सदा भागीदार भी बनता था, इसलिए वह अत्यन्त लोकप्रिय था।

31

मुल्ला अपने दोस्त के साथ ताश खेल रहा था कि एक लड़का आया और मुल्ला के हाथ पर एक लिफाफा रखकर चला गया। मुल्ला ने लिफाफा खोला। उसमें मुशायरे का निमंत्रण पत्र था। भेजने वाले के नाम के स्थान पर लिखा था-'मुल्ला, सबेरे तुम्हें पता चल जाएगा कि यह पत्र भेजने वाला कौन है?' मुल्ला ने यह पढ़ा और मुस्कुराकर अपने दोस्त से बोला-'वही मेरा हँसोड़-दोस्त अब्दुल्ला है, इस पत्र को भेजने वाला। चलो मुशायरा देख आयें।' मित्र को क्या आपत्ति होती? दोनों मुशायरा देखने चले गए। सुबह चार बजे जब घर लौटे तो क्या देखते हैं कि चोर घर का पूरा सामान चुरा ले गये हैं। एक मेज पर पत्र अवश्य छोड़ गये थे जिस पर लिखा था- 'मैंने रात को भेजे गये निमन्त्रण पत्र में लिखा था न कि सबेरे आपको पता चल जाएगा कि यह पत्र किसने भेजा है।' ४६. मरीज 'भई मुल्लाजी, मुझे ऐसा आभास होता है मानो मुझे किसी बड़ी बीमारी ने जकड़ लिया है। जरा मेरे शरीर की परीक्षा करो।' एक मरीज ने मुल्ला के पास पहुँचकर कहा।

मुल्ला ने बड़ी बारीकी से ध्यानपूर्वक उसकी नब्ज देखी, आँखें, नाखून, जीभ आदि उलट-पुलट कर देखे फिर बोला, 'वाकई तुम्हें बड़ा भयानक रोग है। जरा अपना दाहिना पैर इस मेज पर तो रखो।'

मरीज ने दाहिना पैर मेज पर रख दिया तो मुल्लाने कहा-'अब बांया पैर भी मेज पर रख दो।'

मरीज ने जैसे ही बायां पैर उठाना चाहा, वह धड़ाम से गिर पड़ा। मुल्ला खुश होकर बोला-'देखो, मर्ज पकड़ा गया न? तुम्हें खड़े-खड़े ही मूर्च्छा आने लगती है।'

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