नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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सगाई
लड़के वाले नयन बिछाए बैठे थे कि अचानक घंटी बजी। लड़की के साथ लड़की वालों ने घर में प्रवेश किया, आदर-सत्कार हुआ, लड़के द्वारा लज्जाते हुए चाय परोसी गयी, लड़के से प्रश्न पूछे गए और घर की प्रत्येक वस्तु का गहनता से निरीक्षण किया गया। बाद में डैडी ने कहा-’बेटी आप दोनों आराम से बातें करो हम साथ वाले कमरे में बैठते हैं।’
रिंपी ने लंकू के पास आकर पूछा-’सच बताना तुम्हारा किसी लड़की से लव अफेयर तो नहीं चल रहा?’
‘नहीं नहीं बिल्कुल नहीं।’ लंकू लज्जा सा गया।
‘तुम्हें खाना बनाना आता है?’
‘जी थोड़ा-थोड़ा आता है...।’
‘ओह नो... क्या तुम्हारे डैड ने सिखाया नही?’
‘जी मैं होस्टल में रहता था ना इसलिए...।’
‘ठीक है, ये बताओं क्या तुमको बेबी को संभालना आता है?’
‘जी मैं सीख लूंगा...।’
‘कब तक?’
‘जब तक बेबी आएगा...।’
‘देखो लंकू मैं सर्विस वाली लड़की हूं घर से बाहर मुझे दस प्रकार के व्यक्तियों से मिलना पड़ता है। मेरा पहला हैसवैंड बड़ा दकियानूसी था इसलिए डायवोर्स ले लिया। कहीं तुम तो... यू नो, बार-बार शादी, फिर डायवोर्स बहुत झंझट लगता है...।’
‘नहीं मैं आपके साथ अच्छे से एडजैस्ट करूंगा।’
‘पहली मुलाकात में सभी मर्द ऐसे ही बोलते हैं। असली चेहरा तो उनका बाद में नजर आता है।’
‘आप चिंता न करे मैं सारी उम्र आपका ध्यान रखूंगा।’
‘चलो ठीक है उम्र भर का फैसला तो बाद में करेगे, पहले तुम एक सप्ताह मेरे साथ रहकर दिखाओ। आपका टेस्ट भी हो जाएगा।’
‘हां जी यह भी ठीक है।’
बराबर वाले कमरे में जाकर रिंपी ने अपना फैसला सुना दिया-’डैड मैंने एक सप्ताह के लिए लंकू को ट्रायल पर रख लिया है, शादी का फैसला बाद में सोच समझ कर लेंगे।’
‘ठीक है डीयर।’ डैड अपनी बेटी को लेकर कमरे से बाहर निकल गया।
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