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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

74

दहेज


पहली मर्तबा ऐसा नहीं हो रहा था... अक्सर शादियों में ऐसा ही होता है कि दूल्हा या उसका पिता अपनी कोई डिमाँड रखें, लड़की का पिता झुंझलाए, परेशान हो और अन्त में कहीं न कहीं अपनी पगड़ी गिरवी रख दे।

इस शादी में बेचारा पिता पिसा जा रहा था, कहीं से निकलने का पथ उसे सुझाई न दिया तो दूल्हे के पिता के पांव में पगड़ी रखकर गिड़गिड़ाया- ’शाहजी लाज रख लो, जल्दी ही प्रबंधकर दूंगा... फेरे पड़ने दो...।’

तभी कहीं से कानाफूसी सुनाई दी...

लड़की शादी से इन्कार कर रही है। अचानक बेचारे पिता दूसरी और भागे।

स्वर बदलकर गुस्सा आ गया था-’नीरा, मैं ये क्या सुन रहा हूं...?’

‘हां पिताजी, मुझे ऐसे लालची आदमी से शादी नहीं करनी...’नीरा झूठी लज्जा का पर्दा उठाकर सामने आ गई।

‘देख बेटी, तू कोई चिंता न कर... मैं सब कर लूंगा। यदि बारात लौट गई तो मेरी नाक कट जाएगी, बेटी...।’ बेचारे ने समझाते स्वर में कहा।

‘ऐसा करने से भी तो आपकी नाक बाकी नहीं रहेगी पिताजी, मैं नहीं चाहती मेरी शादी हो और आप ऋणी हो जाएं और हर बार ब्याज चुकाते समय मुझे कोसें...’

‘बेटी...।’ वह बेचारा गिरकर बेहोश हो गया।

दुल्हन निकलकर चौक में आ गई ...’ निकल जाइए... निकल जाइए हमारे घर से...।’

सारा वातावरण सहम गया। एक-एक बाराती सकुचाता हुआ उस घर से निकलता गया।

 

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