नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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निर्णय
‘देखो... पहले वो उठा लाओ’ करवट बदलकर पत्नी ने कहा।
‘नहीं, वह मुझे अब अच्छा नहीं लगता और अब उसकी आवश्यकता भी नहीं है...’
‘क्यों...?’
‘शादी को दो वर्ष को आए, माँ हर रोज टोकती है।’
‘नहीं’ उसकी दबी हुई चीख निकली- ‘मैं अभी बच्चा पैदा नहीं कर सकती, मेरा सारा कैरियर बिगड़ जाएगा...।’
‘चाहे जो हो अब हमें एक बच्चा तो चाहिए ही- घर बड़ा सूना-सूना-सा लगता है’ वह उसके बहुत करीब आ गया था।
‘बल प्रयोग मत करो’ वह उठकर कुर्सी पर बैठ गई- ‘मैंनें शादी से पहले ही तुम्हें अपनी शर्त बता दी थी।’
‘सो तो ठीक है लेकिन तुम्हें ये सब करने की आवश्यकता क्या है? भगवान का दिया सब कुछ तो है अपने पास।’
‘नृत्य तो मेरा जीवन है। अपने शौक के लिए मैं नृत्य करती हूं।’
‘तो फिर मुझे कोई न कोई निर्णय लेना पड़ेगा’ दबे-दबे स्वर में उसने कहा।
‘इसके लिए आप स्वतन्त्र हैं लेकिन नृत्य को मैं नहीं छोड़ सकती।’ अपना दृढ़ निश्चय सुनाकर वह टेबल पर पड़ी पुस्तक के पन्ने पलटने लगी।
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