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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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समर्पण


रविवार के दिन डॉ. सारांश अपनी बेटी का होमवर्क करा रहा था।

चिंकी की नजर जंगले में गूटर-गूं, गूटर-गूं करते कबूतर पर पड़ी तो बोल पड़ी-’पापा जरा इस लंगड़े कबूतर को देखो तो...।’

‘चिंकी इसका क्या देखूं?’

‘इसका एक पांव नहीं है, प्लीज मेरा लगा दो ना...’

‘तो तुम एक पांव से कैसे चलोगी?’

‘कुछ दिनों में नया पांव आ जाएगा...।’

‘ऐसे कहीं दूसरा पांव भी आता है?’

‘क्यों नहीं आता... देखो पिछले दिनों मेरा यह दांत टूट गया था फिर नया कैसे आ गया...?’

डॉ. सारांश को कोई जवाब न सूझा परन्तु वह अपनी बेटी के समर्पण भाव को देखकर आत्म-विभोर हो गया।

 

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