नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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नेत्रदान
प्यारी माँ, प्रणाम
मन में एक बोझ है। आपके सम्मुख कहने का साहस न हुआ इसलिए पत्र को माध्यम बना रही हूं।
आज भी हमें अपने पापा पर गर्व है। जीवन के अंतिम वर्षो में उन्होंने समाज की बड़ी सेवा की, विशेषकर नेत्रदान के क्षेत्र में उनका बड़ा नाम है। तुम्हें याद है एक बार अपने जन्म दिन पर परिवार के सभी सदस्यों का नेत्रदान करने के लिए शपथ-पत्र भरवाया था।
उनके स्वर्गवास के समय अशोक गुप्ता अंकल ने भाई के माध्यम से नेत्रदान की चर्चा की थी परन्तु विह्वल अवस्था देखकर मैं आपके सामने मुंह न खोल पायी। मालूम नहीं मैंने ठीक किया या गलत परन्तु आज यह ख्याल अत्यधिक पीड़ा दे रहा है। पापा को बचाना तो हमारे हाथ में नहीं था परन्तु उनकी आंखों को तो जिंदा रख सकते थे। इस अपराध के लिए अपनी बेटी को क्षमा कर देना। तुम्हारी तनु।
पत्र पढ़कर माँ की आंखों में आंसू छलक आए। क्रिया-कर्म, दान-दक्षिणा सब विधि-विधान से किया परन्तु उनकी नेत्रों का महादान करने से चूक गए। तनु का पत्र माँ के हाथ से छूटकर पंखे की हवा में उड़ गया।
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