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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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अपना राज


पंचायत के चुनाव से एक वर्ष पूर्व ही चरण सिंह मूच्छों पर तांव चढ़ाने लगा था। जैसे ही चुनाव पास आए, उसे पहला झटका तब लगा जब उसके गांव की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो गयी। कई दिन सोच विचार करने के बाद उसने अपनी पत्नी से चुनाव लड़वाने का निर्णय ले लिया। पत्नी को पहली बार जब उसने बताया तो उसने एकदम मना कर दिया। ‘राज-पाट चलाना के औरतों का काम सै’ पत्नी ने कहा तो उसने तर्क दिया-’इन्दिरा गांधी के औरत नहीं थी..?’

किसी और महिला ने पर्चा नहीं भरा तो सर्वसम्मति से उसकी पत्नी को सरपंच बना दिया गया। देर रात तक उसके घर में शराब की पार्टी चलती रही और बार-बार पार्टी में वह लोगों को यह समझाता रहा-’लुगाईयां का राज आ गया, इब देश तरक्की करेगा।’

किसी दिन कार्यालय में जाना होता तो चरणसिंह बैंत लिए आगे-आगे और पत्नी घूंघट निकाले पीछे-पीछे। जब कुछ अधिकारियों ने उसको टोका तो वह दफ्र्तर में घुसते हुए पत्नी को आगे करने लगा।

एक वर्ष बाद पत्नी में अकेले जाने का साहस भी आ गया।

सरपंच महोदया ने जबसे पति द्वारा पीडि़त एक महिला का केस महिला आयोग में दर्ज कराया है, तब से चरण सिंह ने घर में ऊंचा बोलना और शराब पीना भी बंद कर दिया। उसकी पत्नी का घूंघट अब मुंह से उठकर सिर तक पहुंच गया।

पत्नी अब लगभग अकेली आने-जाने लगी? चरणसिंह अपनी पोली में बैठा खाने और हुक्का गरम करने की प्रतीक्षा करता रहता। जब कोई उधर न आता तो वह हुक्का गरम करने के लिए खुद ही बड़बड़ाने लगता। ‘लुगाइयों का राज भी कुछ ना...।’

 

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