नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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बेबस
हवेली की ड्योढ़ी में भाई ने विदा करण आयी बरखा को जाते-जाते टोक दिया-’बहन तेरी या हवेली घनी बड़ी सै और इसमें सब कामों की मौज सै... पर इसमें आकै जी सा घुटै सै...।’
बाबू नै करजे, में ब्याह दी के करती... कलेजे में सांस खेंचकै...’
‘भाई तूं तो बरस-छमाही कदै-कदै आवै, मनै देख बरसों से इसी हवेली में घुटण लागरी...’ आंख से टपकते आंसू को एक ओर झिटक दिया।
‘पर भाई इबतो आदत सी बणगी...।’
‘कुछ बस नहीं चालै बहन।’
भारी मन से रामधन ने अपना पांव धेल से बाहर धकेल दिया।
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