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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

24

काश! लड़की होती


‘आज कॉलेज की फीस देनी है रुपये चाहिए...।’

‘एक फूटी कौड़ी भी नहीं है जहर खाने को...।’

‘फिर मुझे कॉलेज में दाखिल क्यों किया था...?’

‘कॉलेज-वालेज छोड़कर कोई काम देख ले। अब मुझसे सारा बोझ नहीं उठाया जाता।’

‘इतना ही था तो पैदा क्यों किया था?’

हुक्के का धुआं अचानक विषैला हो गया।

आपको विश्वास नहीं आ रहा होगा। लेकिन सचमुच ये संवाद पिता-पुत्र के बीच हुए हैं।

तीन लड़कियों पर इकलौता राजकुमार, सबने मुंह का निवाला निकालकर छकाया था उसे। अब पिता चाहता भी है कि सारा निवाला निकाल ले लेकिन हर बार उसकी अपनी टोपी ही उसे रोक लेती है।

‘लो पिताजी, दवा पी लो’ बड़ी लड़की के स्नेहपूर्ण शब्द सुनकर निहाल हो गया वह।

बेचारियों को ले-देके पराया कर दिया लेकिन जिस पर आशा बंधी थी, वही अब खून चूस रहा है।

कितनी खुशी मनाई थी उसके जन्म की...। क्या-क्या सपने संजोए थे... अच्छा हुआ, यह सब देखने से पहले ही वह उठ गयी...काश! मेरे घर चौथी बार भी लड़की पैदा हुई होती...’ एक गहरी सांस के साथ उसने कड़वी दवा को गले से उतार लिया और पुनः हुक्का गुड़गुड़ाने लगा।

 

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