आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलेश्रीराम शर्मा आचार्य
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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।
समय पीछे नहीं लौटता, वह निरंतर आगे ही बढ़ता है। उसके साथ ही मान्यताओं में, प्रचलनों में भी परिवर्तन होता चलता है। ऐसा आग्रह कोई कदाचित् ही करता हो, कि जो पहले दिनों माना या किया जाता रहा है, वही पत्थर की तरह सदा सर्वदा जारी रहना चाहिए। ऐसे दुराग्रही तो शायद बिजली का प्रयोग करने और नल का पानी पीने से भी ऐतराज कर सकते हैं? उन्हें शायद गुफा बनाकर रहने का भी आग्रह हो, क्योंकि पूर्व पुरुषों ने निवास के लिए उसी प्रक्रिया को सरल समझा था।
कभी मिट्टी के खपरों पर लेखन का काम लिया जाता था। बाद में चमड़े, भोजपत्र, ताड़पत्र आदि पर लेखन कार्य चलने लगा। कुछ दिनों हाथ का बना कागज भी चला, पर अब तो सर्वत्र मिलों का बना कागज ही काम में आता है। हाथ से ग्रंथों की नकल करने का उपक्रम लंबे समय तक चलता रहा है, पर अब तो छपाई की सरल और सस्ती सुविधाएँ छोड़ने के लिए कोई तैयार नहीं। तब रेल-मोटर आदि की आवश्यकता न थी, पर अब तो उनके बिना परिवहन और यातायात का काम नहीं चलता। डाक से पत्र व्यवहार करने की अपेक्षा घोड़ों पर लंबी दूरी पर संदेश भेजने की प्रथा अब एक प्रकार से समाप्त ही हो गई है।
परिवर्तन के साथ जुड़े हुए नए आयाम विकसित करने की आवश्यकता अब इतनी अनिवार्य हो गई है कि उसे अपनाने से कदाचित् ही कोई इनकार करता हो? घड़ी का उपयोग करने से अब कदाचित ही कहीं एतराज किया जाता हो?
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