ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
जामुन का पेड़
रवि...., रवि बेटे अन्दर आओ।
आया मां, जरा यह पेड़ और लगा दूं।
क्या रवि बेटे तुम भी दिन भर पेड़ लिए फिरते हो। झल्लाते हुए मां ने कहा।
देखिए ना मां, आज मेरी इस छोटी सी बगिया में फिर से कितने सुन्दर फूल खिले हैं
हां फूल तो बहुत सुन्दर हैं, पर अन्दर जा और अपने हिस्से की जामुन खा ले।
रवि अन्दर गया और कुछ देर बाद ही जामुन लेकर फिर से अपनी बगिया के पास आकर खाने लगा। आज बड़ा सुकून मिल रहा था उसे।
रवि ने सोचा- ‘क्यों न मैं जामुन बोऊं। उससे पेड़ बनेंगे और जामुन लगेंगे। मैं ये बीज जरूर बोऊंगा। मन में बड़बड़ाते हुए दो-चार बीज बो दिए। कुछ दिन बाद गेंदे की जड़ों से कई छोटे-छोटे अंकूर निकले। यह देखकर रवि की बांछें खिल उठी। और दौड़ता हुआ मां के पास आकर कहने लगा।
मां, अरी ओ मां देख आज मेरी इस छोटी सी बगिया में कुछ जामुन के पेड़ और उग आये हैं।
मां को इससे कोई खुशी नहीं हुई, मगर रवि के लिए तो आज जैसे कोई नायाब चीज मिली हो। उसके कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। अब तो रवि हर समय अपने छोटे-छोटे पौधों के साथ ही अपना समय गुजारता। स्कूल से आने के बाद उसका समय दोस्तों के साथ कम और पेड़-पौधों के साथ अधिक गुजरता था।
आज मेरे जामुन के पेड़ों में छः-सात पत्तियां हो जायेंगी - स्कूल जाते हुए रवि मन में बड़बड़ाया। और स्कूल चल दिया।
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