ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
यह सुन उल्लू कहने लगा- भाई खरगोश आप यह ठीक कह रहे हैं कि मैं रात को भ्रमण कर सभी जीवों की कुशलक्षेम जानता रहूंगा। मैं पूरी ईमानदारी से इस पर काम भी करूंगा, परन्तु मेरे सामने भी एक समस्या है कि मैं दिन में नहीं देख सकता और बिना देखे मैं यह कैसे पता करूंगा कि दिन में क्या चल रहा है। यदि पता भी कर लूंगा तो सही से न्याय नहीं कर पाऊंगा सो इस बारे मुझे तो रहने ही दो। मुझसे सही न्याय नहीं हो पायेगा। प्लीज आप मुझे माफ करें। मैं इस पद के लिए उपयुक्त नहीं हूं।
यह सुन कर खरगोश ने कहा- देखो भाइयो और बहनों, मैंने बहुत से जीवों से पूछ लिया है कोई भी इस पद के लिए आगे नहीं आना चाहता। अब मैं कौवे भाई साहब से यह विनती करता हूं कि वो ही इस पद के लिए राजी हो जायें ताकि उनका नाम आगे भेज कर उन्हें निर्विरोध चुनकर जंगल का सरपंच बनाने के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास रिपोर्ट भेजी जा सके।
यह सुन कौआ कहने लगा - सबसे पहले तो मैं भाई खरगोश व यहां पर आये सभी गणमान्य जीव-जन्तुओं, प्यारे भाईयों और प्यारी-प्यारी बहनों, आप सबका दिल से आभारी हूं जो जंगल के भ्रष्ट लोकतंत्र या शासन से आहत होकर यहां एकत्रित हुए हैं। मैं मानता हूं कि हमारी जाति के जीव कुछ मनचले होते हैं, प्यारी बहन कोयल ने जो कहा वह ठीक है। पर मैं बगुले की बात से भी सरोकार रखता हूं कि पांचों ऊंगली एक जैसी नहीं होती जो कि मानवों की कहावत है, ठीक है मैंने आज तक किसी भी मादा जीव की तरफ आंख उठाकर नहीं देखा। ये मैं अपनी प्रशंशा नहीं कर रहा हूं। जैसा कि आप जानते हैं कि मैं मांसाहारी और शाकाहारी दोनों श्रेणियों में आता हूं। खुदा ना करें कल को मुझे सरपंच बना दिया जाये और मुझसे कोई गलत काम हो जाये तो मुझे तो फांसी खानी पड़ेगी ही, साथ ही पूरे खानदान पर भी कालिख पुत जायेगी। नहीं-नहीं भाई, मैं भी इस पद के लायक नहीं हूं। मुझे माफ करना, सॉरी भाईयो और बहनों।
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