ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
उसकी इन बातों को सुनकर खरगोश ने हिरण की तरफ आशा भरी नजरों से देखा। उसकी दृष्टि को देखते ही हिरण समझ गया कि वह उसे सरपंच बनने के लिए कह रहा है हिरण भी उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- मैं मानता हूं कि खरगोश भाई, आप मुझे सरपंची के लिए कह रहे हैं। मैं खूब तेज दौड़ भी लेता हूं और शाकाहारी भी हूं। मैं अपनी तरफ से किसी भी जंगलवासी को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं होने दूंगा, मगर जब मांसाहारी हिंसक जीव जंगल के जीवों को खाने आयेंगे तो मैं किसी भी प्रकार से उनकी रक्षा नहीं कर पाऊंगा और मान लो रक्षा के लिए उनके आगे भी आऊंगा तो सबसे पहले वो मांसाहारी जीव मुझे ही खायेगा। सो मैं भी इस पद के योग्य नहीं हूं।
यह सुन खरगोश ने चील और गिद्ध की तरफ देखा और कहा-
आप इस जंगल में सबसे तेज उड़ने वाले जीव हो। आप अधिक से अधिक ऊंचाई तक उड़ सकते हो और ऊपर से ही जंगल की सारी गतिविधियों पर नजर रख सकते हो तो क्यों न मैं आपका ही नाम आगे भेज दूं। यह सुन गिद्ध कहने लगा - भाई खरगोश, आप ठीक कह रहे हैं। मैं काफी ऊपर तक उड़ सकता हूं। बुद्धि भी खैर ठीक ही है। मैं किसी भी प्रकार से जंगल का अहित नहीं होने दूंगा, मगर यह एक ईमानदारी का पद है। इस पद पर रहते हुए यदि कभी मुझसे कोई गलती हो गई तो मेरी तो आने वाली सभी पुश्तों पर कलंक लग जायेगा, सो आप मुझे तो माफ ही कर दें।
अब खरगोश थोड़ा निराश हो गया और कहने लगा- आज हमने जो यह महासभा बुलाई है। उसमें जब तक यह फैसला नहीं हो लेगा कि सरपंच पद के लिए कौन सही उम्मीदवार रहेगा और उसका नाम घोषित नहीं हो लेगा तब तक सभा भंग नहीं हो सकती।
अब वह उल्लू से कहने लगा कि- भाई इस पद के लिए मुझे लगता है कि आप ही ठीक रहेंगे क्योंकि आप रात को भी देख सकते हैं और रात को भ्रमण करते हुए आप जंगल में सभी जीवों की कुशलक्षेम जानते रहेंगे और अन्य घुसपैठिये जानवरों से भी जंगली जीवों आगाह कराते रहेंगे।
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