ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
सात भाई और डायन
एक गांव में एक औरत रहती थी। उसके यहां सात लड़के थे। एक दिन उन सातों भाईयों ने मां से कहा- मां अब हम बड़े हो गए हैं और कोई काम करना चाहते हैं।
मां ने कहा- ठीक है यहीं पर रहकर कोई काम शुरू कर दो।
तब बड़ा कहने लगा- नहीं मां हम किसी जंगल में रहेंगें और वहां से लकडि़यां काटकर गांवों में बेच दिया करेंगें।
मां ने कहा कि नहीं अभी तुम इतने बड़े भी नहीं हुए तुम्हें अभी इसके बारे में समझ नहीं है।
परन्तु बेटों की जिद्द के आगे मां को झुकना पड़ा और उनको आज्ञा देनी पड़ी।
सातों भाई अपने गांव से निकल पड़े और दूसरे गांव से दूर जाकर किसी वन में रहने लगे। वहां पर सातों भाईयों ने काफी दिन तक लकडि़यां बेचीं। इससे उनके पास अत्यधिक धन इकट्ठा हो गया।
एक दिन सभी लकडि़यां काटते-काटते उस स्थान पर पहुँचे जहां पर एक डायन रहती थी। डायन को उन्होंने नहीं देखा परन्तु डायन ने उनको देख लिया वह डायन उनका पीछा करने लगी और उनकी झोपड़ी के पास जाकर छुप गई। जब रात हुई तो वह उन सातों भाईयों में से एक को खा गई।
सुबह जब सभी भाई जागे तो देखा कि छोटा भाई नहीं था उनमें से एक ने कहा शायद मां की याद आ गई होगी और वह घर गया। चलो कोई बात नहीं आ जाएगा। अब दूसरे दिन फिर वह डायन दूसरे को खा गई। इस प्रकार से लगातार पांच भाईयों को वह खा गई। अब तक सभी ने यही सोचा था कि उन्हें मां की याद आ गई होगी और मां से मिलने गए होंगे।
अब दोनों भाई आपस में बातें करने लगे आज हम दोनों एक-दूसरे के पैरों से पैर बांधकर सोएंगे यदि तुम जाओगे तो मुझे पता चल जाएगा और मैं जाऊँगा तो तुम्हें पता चल जाएगा। इस प्रकार दोनों सो गए। जब रात हुई तो वह डायन आई और एक भाई को उठाकर खाने लगी परन्तु तभी दूसरे भाई की नींद खुल गई। उसने कुल्हाड़ा उठाया और उस डायन के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। इस प्रकार से उसने उस डायन का खात्मा कर दिया।
दोनों भाई उसी दिन उस जंगल को छोड़कर अपने घर वापस आ गए और मां को सारा हाल कह सुनाया। मां को बड़ा दुख हुआ परन्तु दोनों भाईयों ने कहा- मां हम दो तो हैं। हम आपकी सेवा करेंगें और आपसे कभी दूर नहीं होंगे।
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