लोगों की राय

नई पुस्तकें >> विजय, विवेक और विभूति

विजय, विवेक और विभूति

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9827
आईएसबीएन :9781613016152

Like this Hindi book 0

विजय, विवेक और विभूति का तात्विक विवेचन


विज्ञान का धनुष है। इसका अभिप्राय यह है कि परशुरामजी के फरसे के द्वारा रावण नहीं मरेगा, भगवान् राम के धनुष द्वारा मरेगा। धर्मरथ में श्रीराम ने बताया कि फरसा दान है और धनुष विज्ञान है। रावण मूर्तिमान मोह है। अभिप्राय यह है कि आप कितना भी दान क्यों न दें, आप संसार के सबसे बड़े दानी भले ही बन जायें और उसके द्वारा आपको कीर्ति मिले, प्रशंसा मिले, परन्तु मोह का विनाश केवल दान से ही नहीं होगा, जब तक विज्ञान नहीं होगा और जब तक आप विज्ञान के धनुष का आश्रय नहीं लेंगे, तब तक रावण का वध नहीं होगा। तो एक ओर सद्गुण, दूसरी ओर विज्ञान और उसके साथ-साथ सबके केन्द्र में जो विद्यमान है –

ईस भजनु सारथी सुजाना। 6/79/7

बस यहाँ पर भी वही शब्द है ‘सुजान’। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान् हमारे रथ के सारथी बन जायें, लड़ने वाले व्यक्ति के पास विज्ञान का धनुष हो, सत्कर्मों का रथ हो, जब इन तीनों – भक्ति, ज्ञान और कर्म – का सामंजस्य जीवन में होता है तभी हमारे जीवन के दुर्गुण दुर्विचार परास्त होते हैं और तब हम आन्तरिक तथा बाह्य जीवन में भी सफलता प्राप्त करते हैं, धन्य हो जाते हैं। मैं आपको यही याद दिलाऊँगा कि इस तीनों वस्तुओं की जीवन में अपेक्षा है और यही ‘रामायण’ का चरम उद्देश्य है –

समर बिजय रघुबीर के  चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहिं देहिं भगवान्।। 6/121 क

।।बोलिए सियावर रामचन्द्र की जय।।

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book