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धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण

सुग्रीव और विभीषण

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9825
आईएसबीएन :9781613016145

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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन


चाहे वे खोटे हैं या खरे हैं, आपके पास आये हुए हैं, आप उन्हें स्वीकार करें। भगवान् श्रीराम कृपामार्ग से स्वयं चलकर गये, पर यहाँ पर अब भी रुके हुए हैं। कहा कि हनुमान् जी और अंगद जायें और उनको लेकर आयें। दोनों लेकर आते हैं। विभीषण ने प्रभु के चरणों में प्रणाम किया। प्रभु उठे और –

भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा। 5/45/2

विभीषण को कसकर हृदय से लगा लिया। तब प्रभु से सुग्रीव की ओर देखा। सुग्रीव को बड़ा बुरा लगा कि मैंने कहा था कि बाँधकर रखिए, ये तो हृदय से लगा रहे हैं। भगवान् ने सुग्रीव की ओर देखकर कहा कि मित्र! बिल्कुल बुरा मत मानना! तुमने जो कहा था उसी आज्ञा का मैंने पालन किया है। तुमने यह तो नहीं कहा कि मार दीजिए। तुमने यह भी नहीं कहा कि भगा दीजिए। तुमने तो यही कहा था कि इसको बाँधकर रखिए तो जब बाँधकर ही रखना है तो भुजा के बन्धन में बाँधकर रखना ही ठीक रहेगा, रस्सी के बन्धन को तो व्यक्ति छुड़ाने की चेष्टा करता है, पर भुजा का बन्धन को ऐसा प्यार का बन्धन है कि उससे छूटने की इच्छा ही नहीं होती। विभीषण भगवान् को पाकर धन्य हो जाते हैं।

जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल।
सो कृपालु मोहि तो पर सदा रहउ अऩुकूल।। 7/124 क

।।बोलिए सियावर रामचन्द्र की जय।।

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