जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
सरकारी नोटिसो वगैरा के खिलाफ कानूनी विरोध करना चाहता, तो मैं कर सकता था। इसके बदले मैंने उनकी सब नोटिसो को स्वीकार कर लिया और अधिकारियों के साथ निजी व्यवहार में मिठास से काम लिया। इसमे वे समझ गये कि मुझे उनका विरोध नहीं करना है, बल्कि उनकी आज्ञा का विनयपूर्वक विरोध करना है। इससे उनमें एक प्रकार की निर्भयता आ गयी। मुझे तंग करने के बदले उन्होंने लोगों को काबू में रखने में मेरी और मेरे साथियो की सहायता का प्रसन्न्ता पूर्वक उपयोग किया। किन्तु साथ ही वे समझ गये कि उनकी सत्ता आज से लुप्त हुई। लोग क्षणभर को दंड का भय छोड़कर अपने नये मित्र के प्रेम की सत्ता के अधीन हो गये।
याद रहे कि चम्पारन में मुझे कोई पहचानता न था। किसान वर्ग बिल्कुल अनपढ़ था। चम्पारन गंगा के उस पार ठेठ हिमालय की तराई में नेपाल का समीपवर्ती प्रदेश है, अर्थात् नई दुनिया है। वहाँ न कहीँ कांग्रेस का नाम सुनायी देता था, न कांग्रेस के कोई सदस्य दिखायी पड़ते थे। जिन्होने नाम सुना था वे कांग्रेस का नाम लेने में अथवा उसमें सम्मिलित होने से डरते थे। आज कांग्रेस के नाम के बिना कांग्रेस के सवेको ने इस प्रदेश में प्रवेश किया और कांग्रेस की दुहाई फिर गयी।
साथियो से परामर्श करके मैंने निश्चय किया था कि कांग्रेस के नाम से कोई भी काम न किया जाय। हमे नाम से नहीं बल्कि काम से मतलब है। 'कथनी नहीं' 'करनी' की आवश्यकता है। कांग्रेस का नाम यहाँ अप्रिय है। इस प्रदेश में कांग्रेस का अर्थ है, वकीलों की आपसी खींचातानी, कानूनी गलियो से सटक जाने की कोशिश। कांग्रेस यानी कथनी एक, करनी दूसरी। यह धारणा सरकार की और सरकार की निलहे गोरो की थी। हमे यह सिद्ध करना था कि कांग्रेस ऐसी नहीं है, कांग्रेस तो दूसरी चीज है। इसलिए हमने कही भी कांग्रेस का नाम तक न लेने और लोगों को कांग्रेस की भौतिक देह का परिचय न कराने का निश्चय किया था।
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