जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
0 |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
अतएव मैं उसी दिन साथियो को लेकर मोतीहारी के लिए रवाना हो गया। मोतीहारी में गोरखबाबू ने आश्रय दिया और उनका घर धर्मशाला बन गया। हम सब मुश्किल से उसमें समा सकते थे। जिस दिन हम पहुँचे उसी दिन सुना कि मोतीहारी से कोई पाँच मील दूर रहने वाले एक किसान पर अत्याचार किया गया है। मैंने निश्चय किया कि धरणीधरप्रसाद वकील को साथ लेकर मैं दूसरे दिन सबेरे उसे देखने जाऊँगा। सवेरे हाथी पर सवार होकर हम चल पड़े। चम्पारन में हाथी का उपयोग लगभग उसी तरह होता है, जिस तरह गुजरात में बैलगाड़ियो का। आधे रास्ते पहुँचे होंगे कि इतने में पुलिस सुपरिंटेंडेंट का आदमी आ पहुँचा और मुझे से बोला, ' सुपरिंटेंडेंट ने आपको सलाम भेजा है।' मैं समझ गया। धरणीधरबाबू से मैंने आगे जाने को कहा। मैं उस जासूस के साथ उसकी भाड़े की गाड़ी में सवार हुआ।
उसने मुझे चम्पारन छोड़कर चले जाने की नोटिस दी। वह मुझे घर ले गया और मेरी सही माँगी। मैंने जवाब दिया कि मैं चम्पारन छोड़ना नहीं चाहता, मुझे तो आगे बढ़ना है और जाँच करनी है। निर्वासन की आज्ञा का अनादर करने के लिए मुझे दूसरे ही दिन कोर्ट में हाजिर रहने का समन मिला।
मैंने सारी रात जागकर जो पत्र मुझे लिखने थे लिखे और ब्रजकिशोरबाबू को सब प्रकार की आवश्यकता सूचनाये दी।
समन की बात एकदम चारो ओर फैल गयी। लोग कहते थे कि उस दिन मोतीहारी में जैसा दृश्य देखा गया वैसा पहले कभी न देखा गया था। गोरखबाबू के घर भीड़ उमड़ पड़ी। सौभाग्य से मैंने अपना सारा काम रात को निबटा लिया था। इसलिए मैं इन भीड़ को संभाल सका। साथियो का मूल्य मुझे पूरा-पूरा मालूम था। वे लोगों को संयत रखने में जुट गये। कचहरी में जहाँ जाता वहाँ दल के दल लोग मेरे पीछे आते। कलेक्टर, मेंजिस्ट्रेट, सुपरिंटेंडेंट आदि के साथ भी मेरा एक प्रकार का संबन्ध स्थापति हो गया।
|