जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
माताजी बोली, 'मुझे तेरा विश्वास हैं। पर दूर देश में क्या होगा? मेरी तो अकल काम नहीं करती। मैं बेचरजी स्वामी से पूछँगी।'
बेचरजी स्वामी मोढ़ बनियों से बने हुए एक जैन साधु थे। जोशीजी की तरह वे भी हमारे सलाहकार थे। उन्होंने मदद की। वे बोले : 'मैं इन तीनों चीजों के व्रत दिलाऊँगा। फिर इसे जाने देने में कोई हानि नहीँ होगी।' उन्होंने प्रतिज्ञा लिवायी और मैंने माँस, मदिरा तथा स्त्री-संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा की। माताजी में आज्ञा दी।
हाईस्कूल में सभा हुई। राजकोट का एक युवक विलायत जा रहा हैं, यह आश्चर्य का विषय बना। मैं जवाब के लिए कुछ लिखकर ले गया था। जवाब देते समय उसे मुश्किल से पढ़ पाया। मुझे इतना याद हैं कि मेरा सिर घूम रहा था और शरीर काँप रहा था।
बड़ों के आशीर्वाद लेकर मैं बम्बई के लिए रवाना हूआ। बम्बई की यह मेरी पहली यात्रा थी। बड़े भाई साथ आये।
पर अच्छे काम में सौ विघ्न आते हैं। बम्बई का बन्दरगाह जल्दी छूट न सका।
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