लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


पर मैं तो जितना प्रेमी उतना ही क्रूर पति था। मैं अपने को उसका शिक्षक भी मानता था, इस कारण अपने अंधे प्रेम के वश होकर उसे खूब सताता था।

यों उसके सिर्फ बरतन उठाकर ले जाने से मुझे संतोष न हुआ। मुझे संतोष तभी होता जब वह उसे हँसते मुँह ले जाती। इसलिए मैंने दो बातें ऊँची आवाज में कहीं। मैं बड़बड़ा उठा, 'यह कलह मेरे घर में नहीं चलेगा।'

यह वचन कस्तूरबाई को तीर की तरह चुभ गया।

वह भडक उठी, 'तो अपना घर अपने पास रखो। मैं यह चली।'

मैं उस समय भगवान को भूल बैठा था। मुझमे दया का लेश भू नहीं रह गया था। मैंने उसका हाथ पकड़ा। सीढ़ियों के सामने ही बाहर निकलने का दरवाजा था। मैं उस असहाय अबला को पकड़कर दरवाजे तक खींच ले गया। दरवाजा आधा खोला।

कस्तूरबाई की आँखो से गंगा-यमुना बह रहीं थी। वह बोली, 'तुम्हें तो शरम नहीं हैं। लेकिन मुझे हैं। मैं बाहर निकलकर कहाँ जा सकती हूँ? यहाँ मेरे माँ-बाप नहीं हैं कि उनके घर चली जाऊँ। मैं तुम्हारी पत्नी हूँ इसलिए मुझे तुम्हारी डाँट-फटकार सहनी ही होगी। अब शरमाओ और दरवाजा बन्द करो। कोई देखेगा तो दो में से एक की भी शोभा नहीं रहेगी।'

मैंने मुँह तो लाल रखा, पर शरमिंदा जरूर हुआ। दरवाजा बन्द कर दिया। यदि पत्नी मुझे छोड़ नहीं सकती थी, तो मैं भी उसे छोड़कर कहाँ जा सकता था? हमारे बीच झगडे तो बहुत हुए हैं, पर परिणाम सदा शूभ ही रहा हैं। पत्नी ने अपनी अद्भुत सहनशक्ति द्वारा विजय प्राप्त की हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai