लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 0

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


अतएव यद्यपि मैं उन्हे जितना चाहता था उतना अक्षर-ज्ञान नहीं गदे सका, तो भी अपने पिछले वर्षो का विचार करते समय मेरे मन में यह ख्याल नहीं उठता कि उनके प्रति मैंने अपने धर्म का यथाशक्ति पालन नहीं किया है और न मुझे उसके लिए पश्चाताप होता हैं। इसके विपरीत, अपने बड़े लड़के के बारे में मैं जो दुःखद परिणाम देखता हूँ, वह मेरे अधकतरे पूर्वकाल की प्रतिध्वनि है, ऐसा मुझे सदा ही लगा हैं। उस समय उसकी उमर इतनी थी कि जिसे मैंने हर प्रकार से अपना मूर्च्छाकाल, वैभव-काल माना हैं, उसका स्मरण उसे बना रहे। वह क्यों माने कि वलह मेरा मूर्च्छाकाल था? वह ऐसा क्यों न माने कि वह मेरा ज्ञानकाल था और उसके बाद में हुए परिवर्तन अयोग्य और मोहजन्य थे? वह क्यों न माने कि उस समय मैं संसार के राजमार्ग पर चल रहा था इस कारण सुरक्षित था तथा बाद में किये हुए परिवर्तन मेरे सूक्ष्म अभिमान और अज्ञान की निशानी थे? यदि मेरे लड़के बारिस्टर आदि की पदवी पाते तो क्या बुरा होता? मुझे उनके पंख काट देने का क्या अधिकार था? मैंने उन्हे ऐसी स्थिति में क्यों नहीं रखा कि वे उपाधियाँ प्राप्त करके मनचाहा जीवन-मार्ग पसन्द कर सकते? इस तरह की दलीले मेरे कितने ही मित्रो ने मेरे सम्मुख रखी हैं।

मुझे इन दलीलो में कोई तथ्य नहीं दिखायी दिया। मैं अनेक विद्यार्थियों के सम्पर्क में आया हूँ। दूसरे बालकों पर मैंने दूसरे प्रयोग भी किये हैं, अथवा कराने में सहायक हुआ हूँ। उनके परिणाम भी मैंने देखे हैं। वे बालक और मेरे लड़के आज समान अवस्था के हैं। मैं नहीं मानता कि वे मनुष्यता में मेरे लड़को से आगे बढ़े हुए हैं अथवा उनसे मेरे लड़के कुछ अधिक सीख सकते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book