जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
हिन्दुस्तानियों से परिचय
ईसाई सम्बन्धों के बारे में अधिक लिखने से पहले उसी समय के दूसरे अनुभवो का उल्लेख करना आवश्यक हैं।
नेटाल में जो स्थान दादा अब्दुल्ला का था, प्रिटोरिया में वही स्थान सेठ तैयब हाजी खानमहम्मद का था। उनके बिना एक भी सार्वजनिक काम चल नहीं सकता था। उनसे मैंने पहले हफ्ते में जान-पहचान कर ली। मैंने उन्हे बताया कि मैं प्रिटोरिया के प्रत्येक हिन्दुस्तानी के सम्पर्क में आना चाहता हूँ। मैंने हिन्दुस्तानियो की स्थिति का अध्ययन करने की अपनी इच्छा प्रकट की और इन सारे कामों में उनकी मदद चाही। उन्होंने खुशी से मदद देना कबूल किया।
मेरा पहला कदम तो सब हिन्दुस्तानियो की एक सभा करके उनके सामने सारी स्थिति का चित्र खड़ा कर देना था। सेठ हाजी महम्मद हाजी जूसब के यहाँ यह सभा हुई, जिनके नाम मेरे पास एक शिफारिशी पत्र था। इस सभा में मेंमन व्यापारी विशेष रुप से आये थे। कुछ हिन्दु भी थे। प्रिटोरिया में हिन्दुओं की आबादी बहुत कम थी।
यह मेरा जीवन का पहला भाषण माना जा सकता हैं। मैंने काफी तैयारी की थी। मुझे सत्य पर बोलना था। मैं व्यापारियों के मुँह से यह सुनता आ रहा था कि व्यापार में सत्य नहीं चल सकता। इन बात को मैं तब भी नहीं मानता था, आज भी नहीं मानता। यह कहने वाले व्यापारी मित्र आज भी मौजूद हैं कि व्यापार के साथ सत्य का मेंल नहीं बैठ सकता। वे व्यापार को व्यवहार कहते है, सत्य को धर्म कहते हैं और दलील यह देते है कि व्यवहार एक चीज हैं, धर्म दूसरी। उनका यह विश्वास हैं कि व्यवहार में शुद्ध सत्य चल ही नहीं सकता हैं। अपने भाषण में मैंने इस स्थिति का डटकर विरोध किया और व्यापारियो को उनके दोहरे कर्तव्य का स्मरण कराया। परदेश में आने से उनकी जिम्मेदारी देश की अपेक्षा अधिक हो गयी हैं, क्योंकि मुट्ठी भर हिन्दुस्तानियो की रहन-सहन से हिन्दुस्तान के करोड़ो लोगों को नापा-तौला जाता हैं।
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