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प्रसाद का तात्विक विवेचन
विषय निन्दनीय हैं, त्याज्य हैं, परन्तु हमें तो बड़े मीठे लगते हैं। हम आपके उपदेश को ठीक मानें कि अपने अनुभव को? गोस्वामीजी ने बड़ा व्यंग्यात्मक उत्तर दिया। अँधेरे में यदि कोई जन्तु काट ले तो चिन्ता हो जाती है कि कहीं साँप ने तो नहीं काटा। इसकी पहचान के लिए उसे नीम की पत्ती खिलाते हैं। यदि नीम मीठा लगे तो समझ जाते हैं कि इसे साँप ने काटा है और इसकी तुरन्त चिकित्सा होनी चाहिए। गोस्वामीजी ने कहा कि विषयों का कड़वा नीम यदि तुम्हें मीठा लग रहा है तो समझ लो कि किसी साँप ने काटा है। ऐसा मत सोचो कि वाह! आज तो मजा आ गया जो कड़ुवा नीम भी मीठा लग रहा है। यह प्रसन्न होने की बात नहीं है, खतरे की चेतावनी है-
काम-भुजंग डसत जब जाही।
विषय-नींब कटु लगत न ताही।। - विनय-पत्रिका, 127/3
हम रोज विषयों का सेवन कर रहे हैं और मिठास का अनुभव हो रहा है। ऐसा भी मही है कि तत्काल कोई मर जा रहा हो! परन्तु ये विषय धीरे-धीरे जीवन में राग की सृष्टि करते हैं और अन्त में उसका परिणाम विनाश होता है, परन्तु विषयों का सर्वथा परित्याग करके कोई व्यक्ति जीवित रह सकता है क्या? शरीर को जीवित रखने के लिए जो विषय हैं, संसार के पदार्थ हैं, उनकी अपेक्षा है।
एक ओर तो हम विषयों के द्वारा अपनी भूख और प्यास मिटाने की चेष्टा करते हैं, परन्तु इससे तृप्ति का अनुभव होते हुए भी व्यक्ति मृत्यु की दिशा में बढ़ता है। दूसरी ओर यदि हम विषयों को पूरी तरह से छोड़ दें तो जीवन रह ही नहीं सकता है। ऐसी स्थिति में 'रामायण' में जो संकेत हैं, वे बड़े महत्त्व के हैं। जब हनुमान्जी ने कहा कि माँ! मैं भूखा हूँ। तो इसका एक सांकेतिक अर्थ है। जगज्जननी सीताजी के अनेक रूप हैं और उनमें एक रूप है कि वे साक्षात् भक्तिरूपा हैं। उनका मुख्य कार्य क्या है?
संकेत आता है कि सीताजी का जन्म तब हुआ, जब महाराज श्रीजनक के राज्य में अकाल पड़ गया, श्रीजनकजी ने हल चलाया और भूमि से सीताजी का प्रादुर्भाव हुआ, वर्षा हुई और अकाल मिट गया। शास्त्रों में भी यज्ञ के द्वारा वर्षा होती है और जब माँ आ गयीं तो वर्षा होना और भी स्वाभाविक है और इससे अकाल मिट गया। जनकपुर में अकाल पड़ गया, इसमें भी सांकेतिक भाषा है।
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