लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> प्रसाद

प्रसाद

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9821
आईएसबीएन :9781613016213

Like this Hindi book 0

प्रसाद का तात्विक विवेचन


प्रभो! आप कृपा करके वह प्रसाद मुझे दीजिए कि जिसके द्वारा मैं इस चौदह वर्ष की अवधि को भली प्रकार से व्यतीत कर सकूँ और तब भगवान् श्रीराम ने अपनी पादुकाएँ दीं और उन पादुकाओं को श्रीभरत ने प्रसाद के रूप में मस्तक पर धारण किया। एक दूसरा बड़ा सांकेतिक प्रसंग आता है वह है - केवट प्रसंग। गंगा पार उतारने के बाद सीताजी की मणि की मुँदरी को जब श्रीराम केवट को देने लगे तो यही कहा कि-

कहेउ कृपाल लेहि उतराई। 2/101/4

प्रभु ने 'उतराई' शब्द का प्रयोग किया। केवट ने कहा कि प्रभो! मैं तो आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि मैं उतराई नहीं चाहता-

न नाथ उतराई चहौं। 2/99 छ

प्रभु ने जब बहुत आग्रह किया तो केवट ने कहा कि इस समय तो मैं नहीं लूँगा लेकिन जब आप लौटकर आयेंगे तो उस समय भी अगर आप उतराई देंगे तो मैं नहीं लूँगा, लेकिन यदि 'प्रसाद' देंगे तो मैं उसे सिर पर धारण करूँगा-

फिरती बार मोहि जो देबा।
सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा।।  2/101/8

'प्रसाद' को मैं आदरपूर्वक ग्रहण करूँगा। श्रीभरत ने भी पादुकाओं को प्रभु का प्रसाद समझकर सिर पर धारण किया। केवट कहता है कि अभी नहीं लूँगा, लेकिन लौटते समय ले लूँगा। दोनों में अन्तर क्या है? अभी लेने और बाद में लेने में अन्तर क्या है? केवट ने जो शब्द कहे थे वे यही थे कि मैं उतराई तो नहीं लूँगा, प्रसाद ले लूँगा। राम-वाल्मीकि संवाद में वाल्मीकिजी ने जो चौदह स्थान बताया उनमें कहा-

प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा।
सादर जासु लहइ नित नासा।। 2/128/1

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book