धर्म एवं दर्शन >> लोभ, दान व दया लोभ, दान व दयारामकिंकर जी महाराज
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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन
गोस्वामीजी प्रभु से कहते हैं कि यही समस्या मेरे जीवन में भी है। जैसे आपने ग्राह का वध करके गज का उद्धार किया था, वैसे ही मेरा भी उद्धार कीजिये।
दूसरी कथा आती है हिरण्यकशिपु की जो अपने ही पुत्र प्रह्लाद को मारने को तत्पर हो जाता है। प्रभु ने हिरण्यकशिपु का भी वध किया। तीसरी कथा आती है दुश्शासन की जिसने दुर्योधन के संकेत पर भरी सभा में द्रोपदी को नग्न करने की चेष्टा की। गोस्वामीजी ने कहा- महाराज! मेरे जीवन में ये तीनों समस्याएँ विद्यमान हैं। वे कहते हैं-
लोभ ग्राह, दनुजेस क्रोध, कुरुराज बंधु खल मार।
प्रभु! मेरे जीवन में लोभ का ग्राह, क्रोध का हिरणकशिपु और काम का दुश्शासन, ये तीनों ही विद्यमान हैं। आपने तीन अवतार लेकर तीनों कालों में इन सबका समाधान किया था। अब मेरे जीवन में भी अवतार लेकर इन समस्याओं का समाधान करने की कृपा करें!
गोस्वामीजी ने 'लोभ' को ग्राह कहा यह बड़ा सार्थक दृष्टान्त है। जीवन में जल की आवश्यकता है उसके बिना काम नहीं चल सकता। हाथी का समूह में रहना मानो समाज में परिवार के रूप में इकट्ठे रहने की ओर संकेत करता है। व्यक्ति परिवार में रहने से ठीक भी रहता है अकेला होने पर इक्कड़ हाथी की तरह उसके भी उच्छृंखल होने का भय बना रहता है। परिवार में रहने पर सबको एक साथ लेकर चलने में संतुलन बना रहता है। पर अकेला रहने पर चाहे जैसा व्यवहार कर सकते हैं। तो मानो जल ही धन है, हाथी जीव का प्रतीक है जो अपने परिवार के साथ रहकर धन प्राप्त करना चाहता है पर समस्या यही है कि अर्थ के सरोवर में लोभ का ग्राह बैठा हुआ है।
इसका तात्पर्य है कि व्यक्ति जब अर्थ की दिशा में बढ़ता है तो लोभ उसे अपनी ओर खींचने लगता है। जब तक लाभ होता है परिवार वाले साथ देते हैं पर जब डूबने की आशंका उत्पन्न हो जाती है तो वे भी साथ छोड़ देते हैं। तब उस स्थिति में व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता है कि प्रभु! मैं अपनी रक्षा में असमर्थ हूँ आप कृपा करके मेरी रक्षा करें। गोस्वामीजी ने इस प्रकार विनय-पत्रिका में इसे एक आध्यात्मिक रूप दिया।
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