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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


आगन्तुक युवक से अब न सहा गया। घूमकर पूछा- क्यों हीरा! तुम ब्याह करोगे?

हीरा- तो इसमें तुम्हारा क्या तात्पर्य है?

रामू- तुम्हें इससे अलग हो जाना चाहिये।

हीरा- क्यों, तुम कौन होते हो?

रामू- हमारा इससे संबंध पक्का हो चुका है।

हीरा- पर जिससे संबंध होने वाला है, वह सहमत न हो, तब?

रामू- क्यों चंदा! क्या कहती हो?

चंदा- मैं तुमसे ब्याह न करूँगी।

रामू- तो हीरा से भी तुम ब्याह नहीं कर सकतीं!

चंदा- क्यों?

रामू- (हीरा से) अब हमारा-तुम्हारा फैसला हो जाना चाहिये, क्योंकि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं।

इतना कहकर हीरा के ऊपर झपटकर उसने अचानक छुरे का वार किया।

हीरा, यद्यपि सचेत हो रहा था; पर उसको सम्हलने में विलम्ब हुआ, इससे घाव लग गया, और वह वक्ष थामकर बैठ गया। इतने में चंदा जोर से क्रन्दन कर उठी - साथ ही एक वृद्ध भील आता हुआ दिखाई पड़ा।

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