नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
इतने में एक दूसरी सुन्दरी, जो कुछ पास थी, बोली- ”कहाँ चलोगे गुल? मैं भी चलूँगी, उसी कुञ्ज में। अरे देखो, वह कैसा हरा-भरा अन्धकार है!” गुल उसी ओर लक्ष्य करके सन्तरण करने लगा। बहार उसके साथ तैरने लगी। वे दोनों त्वरित गति से तैर रहे थे, मीना उनका साथ न दे सकी, वह हताश होकर और भी पिछड़ने के लिए धीरे-धीरे तैरने लगी।
बहार और गुल जल से टकराती हुई डालों को पकड़कर विश्राम करने लगे। किसी को समीप में न देखकर बहार ने गुल से कहा- ”चलो, हम लोग इसी कुञ्ज में छिप जायँ।”
वे दोनों उसी झुरमुट में विलीन हो गये।
मीना से एक दूसरी सुन्दरी ने पूछा- ”गुल किधर गया, तुमने देखा?”
मीना जानकर भी अनजान बन गई। वह दूसरे किनारे की ओर लौटती हुई बोली-”मैं नहीं जानती।”
इतने में एक विशेष संकेत से बजती हुई सीटी सुनाई पड़ी। सब तैरना छोड़ कर बाहर निकले। हरा वस्त्र पहने हुए, एक गम्भीर मनुष्य के साथ, एक युवक दिखाई पड़ा। युवक की आँखें नशे में रंगीली हो रही थीं; पैर लडख़ड़ा रहे थे। सबने उस प्रौढ़ को देखते ही सिर झुका लिया। वे बोल उठे- ”महापुरुष, क्या कोई हमारा अतिथि आया है?”
“हाँ, यह युवक स्वर्ग देखने की इच्छा रखता है”- हरे वस्त्र वाले प्रौढ़ ने कहा।
सबने सिर झुका लिया। फिर एक बार निर्निमेष दृष्टि से मीना की ओर देखा। वह पहाड़ी दुर्ग का भयानक शेख था। सचमुच उसे एक आत्म-विस्मृति हो चली। उसने देखा, उसकी कल्पना सत्य में परिणत हो रही है।
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