नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“नहीं मीना, सबके बाद जब मैं तुम्हें अपने पास ही पाता हूँ, तब और किसी आकांक्षा का स्मरण ही नहीं रह जाता। मैं समझता हूँ कि.....”
“तुम गलत समझते हो......”
मीना अभी पूरा कहने न पाई थी कि तितलियों के झुण्ड के पीछे, उन्हीं के रंग के कौषेय वसन पहने हुए, बालक और बालिकाओं की दौड़ती हुई टोली ने आकर मीना और गुल को घेर लिया।
“जल-विहार के लिए रंगीली मछलियों का खेल खेला जाय।”
एक साथ ही तालियाँ बज उठीं। मीना और गुल को ढकेलते हुए सब उसी कलनादी स्रोत में कूद पड़े। पुलिन की हरी झाड़ियों में से वंशी बजने लगी। मीना और गुल की जोड़ी आगे-आगे और पीछे-पीछे सब बालक-बालिकाओं की टोली तैरने लगी। तीर पर की झुकी डालों के अन्तराल में लुक-छिपकर निकलना, उन कोमल पाणि-पल्लवों से क्षुद्र वीचियों का कटना, सचमुच उसी स्वर्ग में प्राप्त था।
तैरते-तैरते मीना ने कहा-”गुल, यदि मैं बह जाऊँ और डूबने लगूँ?”
“मैं नाव बन जाऊँगा, मीना!”
“और जो मैं यहाँ से सचमुच चली जाऊँ?”
“ऐसा न कहो; फिर मैं क्या करूँगा?
“क्यों, क्या तुम मेरे साथ न चलोगे?”
|