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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


सलीम ने आश्चर्य से प्रेमा को देखकर चीत्कार करना चाहा; पर वह सहसा रुक गया। उधर प्यार से प्रेमा के कन्धों को हिलाते हुए नन्दराम ने उसका चौंकना देख लिया।

नन्दराम ने कहा- ”प्रेमा! हम दोनों के लिए रोटियाँ चाहिए! यह एक भूखा परदेशी है। हाँ, पहले थोड़ा-सा पानी और एक कपड़ा तो देना।”

प्रेमा ने चकित होकर पूछा- ”क्यों?”

“यों ही कुछ चमड़ा छिल गया है। उसे बाँध लूँ?”

“अरे, तो क्या कहीं लड़ाई भी हुई है?”

“हाँ, तीन-चार वजीरी मिल गये थे।”

“और यह?” - कहकर प्रेमा ने सलीम को देखा। सलीम भय और क्रोध से सूख रहा था! घृणा से उसका मुख विवर्ण हो रहा था।

“एक हिन्दू है।” नन्दराम ने कहा।

“नहीं, मुसलमान हूँ।”

“ओहो, हिन्दुस्तानी भाई! हम लोग हिन्दुस्तान के रहने वालों को हिन्दू ही सा देखते हैं। तुम बुरा न मानना।” - कहते हुए नन्दराम ने उसका हाथ पकड़ लिया। वह झुँझला उठा और प्रेमकुमारी हँस पड़ी। आज की हँसी कुछ दूसरी थी। उसकी हँसी में हृदय की प्रसन्नता साकार थी। एक दिन और प्रेमा का मुसकाना सलीम ने देखा था, तब जैसे उसमें स्नेह था। आज थी उसमें मादकता, नन्दराम के ऊपर अनुराग की वर्षा! वह और भी जल उठा। उसने कहा- ”काफिर, क्या यहाँ कोई मुसलमान नहीं है?”

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