नई पुस्तकें >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
नन्दराम अब निश्चिन्त होकर धीरे-धीरे घर की ओर बढ़ रहा था। सहसा उसे कराहने का शब्द सुन पड़ा। उसने ऊँट रोककर सलीम से पूछा- ”क्या है भाई? तू कौन है?”
सलीम ने कहा- ”भूखा परदेशी हूँ। चल भी नहीं सकता। एक रोटी और दो घूँट पानी!”
नन्दराम ने ऊँट बैठाकर उसे अच्छी तरह देखते हुए फिर पूछा- ”तुम यहाँ कैसे आ गये?”
“मैं हिन्दुस्तान से हिजरत करके चला आया हूँ।”
“अहो! भले आदमी, ऐसी बातों से भी कोई अपना घर छोड़ देता है? अच्छा, आओ, मेरे ऊँट पर बैठ जाओ।”
सलीम बैठ गया। दिन ढलने लगा था। नन्दराम के ऊँट के गले के बड़े-बड़े घुँघरू उस निस्तब्ध शान्ति में सजीवता उत्पन्न करते हुए बज रहे थे। उल्लास से भरा हुआ नन्दराम उसी की ताल पर कुछ गुनगुनाता जा रहा था। उधर सलीम कुढक़र मन-ही-मन भुनभुनाता जा रहा था; परन्तु ऊँट चुपचाप अपना पथ अतिक्रमण कर रहा था। धीरे-धीरे बढऩेवाले अन्धकार में वह अपनी गति से चल रहा था।
सलीम सोचता था- ‘न हुआ पास में एक छुरा, नहीं तो यहीं अपने साथियों का बदला चुका लेता!’ फिर वह अपनी मूर्खता पर झुँझलाकर विचारने लगा- ‘पागल सलीम! तू उसके घर का पता लगाने आया है न।’ इसी उधेड़बुन में कभी वह अपने को पक्का धार्मिक, कभी सत्य में विश्वास करनेवाला, कभी शरण देनेवाले सहधर्मियों का पक्षपाती बन रहा था। सहसा ऊँट रुका और घर का किवाड़ खुल पड़ा। भीतर से जलते हुए दीपक के प्रकाश के साथ एक सुन्दर मुख दिखायी पड़ा। नन्दराम ऊँट बैठाकर उतर पड़ा। उसने उल्लास से कहा-”प्रेमो!” प्रेमकुमारी का गला भर आया था। बिना बोले ही उसने लपककर नन्दराम के दोनों हाथ पकड़ लिये।
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