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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


“जब वह विदा होने लगा, तब उनसे विदाई के स्वरूप में उस कामधेनु को माँगने लगा। जब उन्होंने न दिया, तब उन्हें दु:ख देने लगा। तपोवन को उसके सैनिकों ने चारों ओर से घेर लिया। किन्तु वशिष्ठ केवल शान्त होकर सहन करने लगे। अकस्मात् पल्लव-देशीय मनुष्यों की युद्ध-यात्रा हो रही थी, उन सबों ने देखा कि ब्रह्मर्षि, एक उन्मत्त क्षत्रिय से सताया जा रहा है, तो सभों ने लड़कर विश्वामित्र को ससैन्य भगा दिया, और वशिष्ठ आश्रम में शान्ति विराजने लगी; किन्तु विश्वामित्र को उस अपमान से परम दु:ख हुआ, और वह तपस्या से शंकर को प्रसन्न करने लगा।

शंकर ने प्रसन्न होकर उसे सब धनुर्वेद का ज्ञान दिया। अब वह धनुर्विद्या से बली होकर फिर उसी वशिष्ठाश्रम पर पहुँचा, और महात्मा वशिष्ठ को पीड़ा देने लगा। जब वशिष्ठ को बहुत व्यथा हुई, तब वे उसके समीप पहुँचे और उसे समझाने लगे; किन्तु बलोन्मत्त क्षत्रिय उन पर शस्त्रों का प्रयोग करने लगा।

वशिष्ठ ने केवल ब्रह्मतेजमय-सहिष्णुतारूपी दण्ड से सबको सहन किया। ब्रह्मर्षि के मुख पर उद्विग्नता की छाया नहीं, ताप भी नहीं, केवल शान्ति ही बिराज रही है। विश्वामित्र विचलित हुए। चित्त की चिन्ता-श्रोतस्विनी का प्रवाह दूसरी ओर फिरा, और वह कह उठा-

“धिग्बलं क्षत्रियबलं”

“वह अब ब्रह्म-बल पाने की आशा से घोर तपस्या कर रहा है, अब उसमें कुछ शान्ति की छाया पड़ी है।”

इतना कहकर नारद अन्तर्भूत हुए। त्रिशंकु घोर चिन्ता में पड़ा। एक-एक करके वशिष्ठ तथा उनके पुत्रों की सब बातें हृदय में बजने लगीं। विषाद तथा क्रोध ने उसे विवेक-हीन बना दिया, चित्त में प्रतिहिंसा जल उठी-बार-बार ‘प्रतिहिंसा’ की ध्वनि उसके कानों में गूँजने लगी। किंकर्तव्य-विमूढ़ होकर मन्त्र-मुग्ध की भाँति विश्वामित्र की तपोभूमि की ओर चल पड़ा।

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