लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809
आईएसबीएन :9781613015797

Like this Hindi book 0

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

फिर भी यह तो मानना होगा कि पन्तजी ही प्रकृति को अपने रूप में चित्रित कर सकते हैं। यद्यपि उन्होंने भी कई स्थानों पर प्रकृति को अपनी कल्पनाओं और भावनाओं के रंग में रँग दिया है और उसका मानवीकरण भी किया है; किन्तु यह प्रवृत्ति इनमें अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा बहुत कम है। 'पल्लव' का ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि छायावाद का प्रारम्भ इसी से माना जाता है। भाव, भाषा, छन्द आदि सभी दृष्टियों से इसे युगान्तरकारी रचना कहना अनुचित न होगा। इसकी भूमिका में भाषा और छन्दों के सम्बन्ध में व्यापक विचार व्यक्त किये गये हैं।

खुले मीन थे लाल के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल !
हाय! रुक गया यहीं संसार ! बना सिन्दूर अंगार !

पहली पंक्ति में परिणीता की सुकुमारता का कैसा सजीव चित्र है, किन्तु 'हाय' से एकदम ही वातावरण बदल जाता है मानो वास्तविक घटना हो गई हो। भाव के अनुसार भाषा और चित्र-विधान का यह अत्युत्कृष्ट उदाहरण है।

इन उत्कृष्ट कविताओं के अतिरिक्त 'पल्लव' में अनेक ऐसी कविताएँ भी स्थान पा गई हैं जिनमें कल्पना के व्यायाम के अतिरिक्त और कुछ मिलता ही नहीं।

संक्षेप में कह सकते हैं कि 'पल्लव' की अधिकांश रचनाए सुन्दर बन पड़ी हैं और 'परिवर्तन' ने तो इसके मूल्य को कई गुना बढ़ा दिया है। निराला जी ने 'परिवर्तन' की प्रशंसा में लिखा है कि वह किसी भी चोटी के कवि की रचना से मैत्री स्थापित कर सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

UbaTaeCJ UbaTaeCJ

"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai