लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809
आईएसबीएन :9781613015797

Like this Hindi book 0

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

साकेत - काव्य की दृष्टि से 'साकेत' एक अत्यन्त सुन्दर कृति है। इसके द्वारा हिन्दी-साहित्य के उत्कृष्टतम काव्य-रत्नों के भंडार में उल्लेख- नीय वृद्धि हुई है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, 'साकेत' की रचना का प्रमुख उद्देश्य न तो उर्मिला का विस्तृत जीवन अंकित करना है और न राम गुणगान ही, अपितु भारत के राष्ट्र-धर्म का, आर्य-संस्कृति का पुनरुत्थान एवं प्रसार ही इसका सबसे बड़ा लक्ष्य है। राम-कथा साधन है और साध्य है-भारतीय संस्कृति का महत्व। कवि इस काव्य मं् अपने इस लक्ष्य में पूर्णतया सफल हुआ है, इसमें कुछ सन्देह नहीं।

यशोधरा - आकार-प्रकार, परिमाण और प्रसिद्धि की दृष्टि से भले ही गुप्तजी के साहित्य में 'साकेत' का स्थान उच्च है, किन्तु कवित्व की दृष्टि से तो 'यशोधरा' को ही प्रमुख पद प्राप्त होगा; ठीक उसी प्रकार जैसे कि गोस्वामी जी का 'रामचरितमानस' सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य होते हुए भी कवित्व की दृष्टि से 'कवितावली' को ही सर्वाधिक महत्व दिया गया है।

बाह्य दृष्टि से देखने पर 'यशोधरा' एक ढिल-मिल खिचड़ी काव्य प्रतीत होता है जिसमें गद्य, पद्य, नाटक, गीत, प्रबन्ध, चम्पू आदि विविध शैलियों का सामंजस्य होते हुए भी किसी की भी प्रमुखता नहीं, फिर भी इसे गीतात्मक प्रबन्ध काव्य ही मुख्य रूप से कहा जा सकता है।

द्वापर - यह भी 'यशोधरा' के समान मुक्तक प्रबन्ध-काव्य है। श्रीकृष्ण, राधा, यशोदा, विधृता ( यज्ञकर्त्ता की पत्नी), बलराम, ग्वाल, नारद, देवकी, उग्रसेन, कंस, अक्रूर, नन्द, बुला और गोपी- ये पात्र एक के बाद दूसरे क्रमश: चित्रपटी पर आ-आकर आत्मनिवेदन के रूप में' अपने कार्यों और विचारों का परिचय देते हुए यथासम्भव उनका समर्थन भी करते जाते हैं।

इसमें कृष्ण के चरित्र को एक सर्वथा नवीन और मौलिक रूप में अंकित करने का प्रयत्न किया गया है। कृष्ण के द्वारा इन्द्र-पूजा के विरोध एवं गोवर्धन-पूजा के प्रवर्तन में युक्ति-युक्त कारण बताया गया है। कृष्ण ने इन्द्रादि देवताओं के नाम पर किये जाने वाले हिंसात्मक कार्यो का विरोध कर दूध-दही आदि सात्त्विक पदार्थो से सम्पन्न होने वाली मातृभूमि की पूजा का प्रचार किया।

पद्य-साहित्य में खड़ीबोली के प्रवर्तन में गुप्तजी का सर्वाधिक योग रहा है। राष्ट्र की भावनाओं को राष्ट्र-भाषा में अनुप्राणित करने का सर्वाधिक श्रेय राष्ट्र के इस महामान्य कलाकार को ही प्राप्त है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

UbaTaeCJ UbaTaeCJ

"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai