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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809
आईएसबीएन :9781613015797

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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

भूषण तब से लेकर शिवाजी महाराज के साथ उनकी छाया के समान बने रहे। उनकी मुत्यु के पश्चात् भी उनके पौत्र साहूजी को अपनी कविताओं के द्वारा प्रोत्साहित करते रहे। भूषण की रचनाओं का ठीक-ठीक पता नहीं लगता। 'शिवसिंह-सरोज' के अनुसार उनके बनाये हुए चार ग्रंथ- शिवराज-भूषण, भूषण-हजारा, भूषण-उल्लास और दूषण-उल्लास है। परन्तु शिवराज-भूषण के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रंथ का अभी तक पता नहीं लगा है। शिवा-बावनी, छत्रसाल-दशक तथा कुछ स्फुट कविताएँ तो समय-समय पर उनके रचे हुए छन्दों के सार-मात्र हैं। शिवराज-भूषण ही उनका प्रामाणिक ग्रन्थ है।

(१) शिवराज-भूषण- इस ग्रन्थ के द्वारा तत्कालीन भारतीय इतिहास के कतिपय रहस्यों पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इसमें शिवाजी, छत्रसाल, कुमाऊँ-नरेश आदि की प्रशंसा में छन्द हैं और रीतिकालीन परम्परा के अनुसार रचे गये हैं। इसका नाम नायक, कवि तथा विषय सभी का द्योतक है।

(२) शिवा-बावनी- इस नाम का भूषण ने कोई ग्रन्थ नहीं बनाया था।

इसमें शिवाजी की प्रशंसा में ५२ कवित्त संगृहीत हैं। इनके सम्बन्ध में यह किंवदन्ती प्रचलित है कि जब भूषण और शिवाजी की भेंट हुई तब भूषण ने छद्मवेशी शिवाजी को ५२ भिन्न-भिन्न कवित्त सुनाये थे। वही ५२ कवित्त शिवा-बावनी में दिये हैं। परन्तु इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। ऐसा जान पड़ता है कि कवि ने भूषण-विषयक उत्तम-उत्तम छन्द चुनकर इस नाम से उनको पुस्तक-रूप में पृथक् प्रकाशित करा दिया होगा। जो भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि इन छन्दों में काफी ओज है। अलंकारों के बन्धनों के कारण शिवराज-भूषण में कवि को जो सफलता नहीं मिली वह उसे इन छन्दों मे प्राप्त हो गई है। इनमें वीर, रौद्र तथा भयानक रस के अत्यन्त सुन्दर उदाहरण हैं।

इन छन्दों का विषय है-शिवाजी की सेना का प्रयाण, उसका वैरियों और उनकी स्त्रियों पर आतंक, शिवाजी का पराक्रम, शिवाजी-महाकवि भूषण का हिन्दू-रक्षा में प्रयत्न। भूषण की प्रतिभा इन छन्दों से खूब खिली है।  

(३) छत्रसाल दशक- यह ग्रंथ भी संग्रहमात्र है। इसमें छत्रसाल की प्रशंसा में दस छन्द हैं। इनमें क्रम नहीं है, समय-समय पर इनकी रचना हुई है। इतिहास की दृष्टि से इन छन्दों का अधिक महत्व है।

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UbaTaeCJ UbaTaeCJ

"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।