लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809
आईएसबीएन :9781613015797

Like this Hindi book 0

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

पद्मावत की मुख्य विशेषताएं

इस प्रकार हम देखते हैं कि मलिक मुहम्मद जायसी वास्तव में एक अत्यन्त सहृदय कवि थे। मुसलमान होते हुए भी उनमें साम्प्रदायिक भावनाओं का लेशमात्र भी नहीं था। उस युग में किसी मुसलमान के लिए किसी हिन्दू वीर-शिरोमणि की प्रशंसा में काव्य लिखना सचमुच ही बड़े साहस का काम था। पद्मावत केवल प्रेम-काव्य ही नहीं है, वह एक उत्कृष्ट वीर-काव्य भी है। अथवा यूँ कह सकते हैं कि कवि ने पद्मावत के रूप में स्वतन्त्र काव्यों को एकत्र संकलित कर दिया है। पद्मावत का पूर्वार्ध यदि सूफी प्रेम-परम्परा पर आधारित एक प्रेम- काव्य है तो उत्तरार्द्ध वीर-काव्यों की परम्परा का अन्तिम प्रतिनिधि काव्य है। पद्मावत में आध्यात्मिक अर्थ की प्रधानता है या ऐतिहासिक भावनाओं की-इस प्रश्न का उत्तर भी यही है कि पूर्वार्ध आध्यात्मिक भावनाओं को प्रकट करने मात्र के लिए लिखा गया है। उसमें ऐतिहासिक अंश है ही नहीं, या केवल इतना ही है कि चित्तौड़ में रत्नसेन नामक एक महाराजा हुए है जिनकी स्त्री पद्मावती थी।

इसके अतिरिक्त सारी कथा कल्पना-मात्र है, क्योंकि न तो कोई पद्मावती 'सिंहलद्रीप' की सुन्दरी थी और न कोई तोता हीरामन रत्नसेन को सिंहल ले ही गया था। रत्नसेन की नागमती नामा दूसरी कोई रानी भी नहीं थी। सिंहल की स्त्रियाँ अत्यन्त सुन्दरी तो दूर रहीं बिल्कुल काली-कलूटी होती है, पर जोगियों की परम्परा में कामरूप  (आसाम) और सिंहलद्वीप (उड़ीसा) को सिद्धपीठ माना गया है। इन्हीं प्रान्तों में जोगियों और तांत्रिकों का सदियों तक बोलबाला रहा है। इसलिए जोगियों ने सिंहलद्वीप में अनेकानेक महत्वपूर्ण पदार्थों के साथ पद्मिनी स्त्रियों की भी कल्पना कर ली। वे पद्मिनी स्त्रियाँ योग-साधना में प्रवृत्त रहने वाले साधकों को ही प्राप्त हो सकती थीं, इसीलिए रत्नसेन को भी जोगी बनने पर ही पद्मावती प्राप्त हुई। इस प्रकार हम देखते हैं कि पद्मावत के पूर्वार्ध की कथा में सूफी-परम्परा की अपेक्षा जोगी-परम्परा में प्रचलित सिद्धान्तों को ही प्रधानता प्राप्त हुई।

विरह-वर्णन-सूफी सिद्धान्तों की दृष्टि से दिचार करने पर ज्ञात होता है कि पद्मावत में यदि कोई सूफी सिद्धान्त है भी तो वह नायक-नायिकाओं का विरह-वर्णन ही है। नागमती का विरह-वर्णन वास्तव में विश्व-काव्य में अपना एक विशेष स्थान रखता है। पर यह विरह- वर्णन भी सूफी-परम्परा का नहीं कहा जा सकता क्योंकि सूफियों के यहाँ नायक ही का विरह-वर्णन किया जाता है, नायिका तो पाषाण-हृदय बनी रहती है। हम पद्मावत में देखते है कि नायक रत्नसेन के साथ नायिका पद्मावती और नागमती भी विरह-व्याकुल हैं। पद्मावत में सच पूछें तो रत्नसेन का पद्माबती के विरह में व्याकुल होना उतना स्वाभाविक नहीं प्रतीत होता। यह स्थिति पद्यावती के विरह-वर्णन की भी है, किन्तु नागमती के विरह का तो एक-एक अक्षर अत्यन्त मार्मिक, प्रभावशाली व स्वाभाविक है। अपने प्रियतम रत्नसेन के विरह में नागमती को रोते देख पाठक की आंखों से बरबस आँसू टपक पड़ते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

UbaTaeCJ UbaTaeCJ

"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai