लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन

मोहनदेव-धर्मपाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9809
आईएसबीएन :9781613015797

Like this Hindi book 0

हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)

अयोध्यासिंह उपाध्याय- (जन्म संवत् १९२२ और मुत्यु २००४) ये काशी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे थे। इन्होंने  'प्रियप्रवास' नामक संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली में प्रथम महाकाव्य लिखा। 'वैदेही-वनवास' नामक एक और महाकाव्य, 'वेनिस का बाँका' व 'अधखिला फूल' उपन्यास, 'रस-कलश' लक्षण- ग्रन्थ तथा 'चोखे चौपदे' आदि अनेक काव्य-संग्रह इन्होंने लिखे हैं।

श्री मैथिलीशरण गुप्त- आपका विस्तृत परिचय आगे  दिया जायगा। गुप्तजी और उपाध्यायजी के अतिरिक्त इस युग में रामनरेश त्रिपाठी ने 'स्वप्न', 'पथिक' और 'मिलन' नामक खण्ड-काव्य व 'कविता-कौमुदी' के आठ भागों में इस काव्य की कविताओं का संग्रह किया।

श्रीधर पाठक ने 'हरमिट, ट्रेवलर' और 'डेजर्टिड विलेज नामक अंग्रेजी काव्यों के अनुवाद 'एकान्त-निवासी योगी' 'श्रान्त पथिक' और 'ऊजड़ गाँव' के नाम से किये।

सत्यनारायण कविरत्न, जगन्नाथदास रत्नाकर और वियोगीहरि ने ब्रजभाषा में अनेक रचनाएँ कीं। कविरत्नजी की  'उत्तररामचरित' और 'मालती-माधव' संस्कृत नाटकों के अनुवाद तथा भ्रमरदूत बड़ी ही सुन्दर रचनाएँ हैं। रत्नाकरजी ने उद्धव-शतक, व गंगावतरण आदि अनेक उत्कृष्ट काव्य लिखे वियोगीहरि की 'वीर-सतसई' बड़ी प्रसिद्ध रचना है। नाथूराम शर्मा 'शंकर', गयाप्रसाद शुक्ल 'स्नेही', रायदेवीप्रसाद 'पूर्ण', रामचरित उपाध्याय, सियारामशरण गुप्त, बद्रीनाथ भट्ट आदि अनेक कवियों ने इस समय में सुन्दर काव्य लिखे। बाबू श्यामसुन्दरदास ने तुलसीदास आदि अनेक कवियों  पर आलोचना व 'साहित्यालोचन' नामक एक प्रौढ़ आलोचना शास्त्र लिखा है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल- (जन्म संवत् १९४१ व देहान्त सं० १९९८) आप काशी विश्वविद्यालय के हिन्दी के प्राध्यापक और अध्यक्ष रहे। 'बुद्ध-चरित' नामक आपका अनूदित काव्य है। आप हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ समालोचक थे। सूर, तुलसी वा जायसी पर लिखी हुई आपकी विस्तृत समालोचनाएँ अत्यन्त पांडित्यपूर्ण हैं। समालोचक के साथ-साथ आप उत्कृष्ट निबन्ध-लेखक भी थे। करुणा, क्रोध आदि मनोभावों पर तथा छायावाद, रहस्यवाद आदि पर आपके निबन्ध 'चिन्तामणि' के दो भागों में संकलित हैं। 

पं० पद्मसिंह शर्मा ने बिहारी पर तुलनात्मक आलोचना लिख कर इस प्रकार की आलोचना का सूत्रपात किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

UbaTaeCJ UbaTaeCJ

"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।