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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


लड़के ने फ़ौरन अदब से मेरे पैरों पर सर झुका दिया, और एक संस्कृत का श्लोक पढ़ने लगा। लब-ओ-लहजा ऐसा साफ़ था और तर्ज़े-अदा ऐसी दिलकश कि मुझे बेअख्तियार इसकी हालत पर रोना आ गया। काश! सनेत्र होता तो न जाने क्या करता। शायद कुदरत ने इसकी प्रतिभा और चतुरता के संतुलन के एतबार से इसे आँखों की रोशनी से मरहूम कर दिया था।

गुजराती ने लड़के को मादराना गरूर की नज़रों से देखकर कहा- ''बहन जी, इन्हें मैंने शास्त्री जी के यहाँ पढ़ने को बैठा दिया है। सुबह को पहुँचा देती हूँ। साँझ को लिवा लाती हूँ। दोपहर को यह शास्त्री जी के घर खा लिया करते हैं। बेचारे भले आदमी हैं। इन पर बड़ी दया रखते हैं। कहते थे कि दो साल में यही पंडिताई के काम में पूरे हो जाएँगे। भागवत का अरथ (मानी) तो यह अभी लगा लेते हैं। किसी दिन इनसे कोई कथा सुनवाऊँगी। मैंने समझा, इनसे और कोई काम तो होगा नहीं, यह काम सीख लेंगे तो भले-बुरे किसी तरह निबाह हो ही जाएगा।''

गाँव की औरतें जमा थीं। मैं वहीं जा बैठी। मेरा ही इंतजार था। गाना शुरू हो गया। गुजराती भंडारे की तरफ़ चली गई। आँगन में कई कडाव चढ़े हुए थे। पूरियाँ निकल रही थीं। दरवाजे पर मेहमान आते-जाते थे। आसपास के कई गाँव के लोग निमंत्रित हुए थे। दिन ढल गया था। गुजराती चाहती थी कि चिराग जलते-जलते अहले-दावत की कतारें उठनी शुरू हो जाएँ। इसका सुप्रबंध और चतुराई देखकर बेअख्तियार बलाएँ लेने को जी चाहता था। एक-एक अंग से तेजी और चुस्ती टपक रही थी। कमज़ोरी और अयोग्यता का बहुत थोड़ा मिश्रण भी न था। वह अपात्रता जो ऐसे मौकों पर अक्सर हमारी गुलूगीर हो जाती है, यहाँ नाम को भी न थी। तीसरे दिन बड़े इसरार के बाद गुजराती ने मुझे रुखसत किया।

मगर यह नया मकान गुजराती को रास न आया। मौजा में एक बूढ़ा साधु आकर ठहरा। गुजराती ने उसकी बड़ी आवभगत की। उसका लड़का सत्यदेव अक्सर बाबा जी के पास जाकर बैठा करता। एक रोज बाबाजी उसके साथ गायब हो गए। चारों तरफ़ तलाश हुई। पुलिस में हुलिया लिखाया गया। मैंने कई अखबारों में ऐलान कराया, पर लड़के का सुराग़ न मिला। यह लड़का गुजराती की ज़िंदगी का सहारा था। मुझे यकीन हो गया कि वह इस सदमे से जान बर न हो सकेगी। इसके थोड़े ही दिनों बाद मुझे जब खबर मिली कि वह तीरथ करने चली गई है तो मेरे ख्याल की तसदीक हो गई। बहुत रंज हुआ। भाग्य-चक्र ने हरा-भरा बारा वीरान कर दिया। एक निर्धन बेकस बेवा के इरादे और हिम्मत को कितनी बेदरदी से पददलित कर दिया।

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